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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उसने यह भी लिखा है कि हमारे संघर्षमें अमेरिकाके लोगोंकी दिलचस्पी बहुत बढ़ गई है। प्राध्यापक कोसाम्बी जिन्होंने यह प्रयत्न किया है, लिखते हैं:[१]

हस्तलिखित पत्र

‘इंडिपेंडेंट’ पत्र तो हाथका लिखा प्रकाशित हो ही रहा है। प्रयागका ‘स्वराज्य’ नामक पत्र भी बन्द हो गया है, क्योंकि उसकी जमानत जब्त कर ली गई है। इस कारण अब ‘स्वराज्य’ भी हस्तलिखित निकाला जाने लगा है। इसका पहला अंक मेरे सामने है। यह हिन्दीमें लिखा हुआ है। इसमें चार पृष्ठ हैं। इसमें सम्पादकको जितना लिखना हो वह उतना सब लिख सकता है और उसे जितने निर्दोष अपराध करने हों उतने कर सकता है। मुझे नौकरशाहीकी दृष्टिसे उसमें अपराध ही दिखाई देते हैं। फिर भी जबतक सब लेखकोंको न पकड़ा जाये तबतक यह अखबार तो प्रकाशित होता ही रहेगा। इसे ज्यों-ज्यों नकल करनेवालों की मदद मिलेगी त्यों-त्यों उसका प्रचार बढ़ेगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २२-१-१९२२

 

१००. पत्र: देवदास गांधीको

रविवार [२२ जनवरी, १९२२][२]

चि० देवदास,

आखिर आज मुझे तुम्हारा पत्र मिल ही गया। ‘इंडिपेंडेंट’ की प्रति साफ नहीं होती। प्रति ऐसी होनी चाहिए जिससे पढ़नेमें तनिक भी कठिनाई न हो। भले ही उसकी संख्या कम हो। तुम्हारे लेख भी तो साफ होने चाहिए न? इस तरहसे समाचारपत्र निकालना भी कला है। लीथोग्राफिंग कैसे होती है, यह तुम्हें समझ लेना चाहिए।

मॉर्डन हाईस्कूलके सम्बन्धमें जोजेफसे तुम्हारी जो बातचीत हुई है उसका पूरा ब्यौरा भेजो।

बापूके आशीर्वाद

मास्टर देवदास गांधी

आनन्द भवन,

इलाहाबाद

गुजराती पत्र (एस० एन० ७८०९) की फोटो-नकलसे।

  1. पत्रके कुछ अंशोंके लिए देखिए “टिप्पणियाँ”, १९-१-२२ का उप-शीर्षक “अमेरिकासे”।
  2. डाककी मुहरसे।