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सीख लेते तबतक उन्हें करबन्दीका रास्ता दिखाना महापाप है और उसका फल हमें ही भोगना पड़ेगा।

अतः मेरी सलाह यह है कि व्यक्तिगत रूपसे लोग विचारपूर्वक जो चाहें सो करें; परन्तु बारडोली और आनन्दके सिवा दूसरी सब जगहोंके लोग लगान अदा करें। इसीमें देशका हित है। हमारे पास कानूनका सविनय भंग करने के दूसरे कितने ही आसान साधन हैं। कर न देना तभी उचित है जब कर न देनेवाला असहयोगकी दूसरी तमाम शर्तोंका पूरा-पूरा पालन करता हो।

धरनेके बारेमें क्या?

३१ जनवरी तक सामुदायिक कानून भंगको छोड़कर हमारी अन्य सब प्रवृत्तियाँ जारी रहती हैं, इसलिए जिन जगहोंमें हम शराबकी दूकानोंपर अथवा शालाओंपर धरना दे रहे हों वहाँ हमें धरना जारी रखना है। अपनी सुविधाकी दृष्टिसे हम उसे बन्द कर दें यह अलग बात है। धरना, हड़ताल और सविनय अवज्ञा बिलकुल बन्द तो तभी रहेंगे जब गोलमेज परिषद् होगी। वह तो होगी तब होगी। इन प्रवृत्तियोंको बन्द रखने से पहले तो हमारे सब स्वराज्यवादी कैदी मुक्त हो जाने चाहिए।

अमेरिकासे सहायता

हमारे कुछ नेता अब मानते हैं कि हमें इंग्लैंड, अमेरिका और अन्य देशों में अपनी प्रवृत्तिका प्रचार करनेके लिए समाचार समिति नियुक्त करनी चाहिए। मेरा विश्वास तो यह है कि इससे हमारा धन व्यर्थ ही खर्च होगा, इतना ही नहीं बल्कि हमारा और भी नुकसान होगा। हमें इसके लिए कुछ लोगोंको नियुक्त करना होगा और इससे हमें आज जो स्वावलम्बन प्राप्त है, वह नहीं रहेगा। आज तो हम मानते हैं कि हमें अपने बल-बूतेपर जूझना है, विदेशोंसे मदद लेकर उसके बलपर नहीं।

इसके अतिरिक्त मैं तो यह मानता हूँ कि हमारा यहाँका कार्य जितना दृढ़ और वास्तविक होगा उतना अपने-आप प्रकाशमें आ जायेगा। प्रचार करनेकी जरूरत उसको होती है जो कम कार्यको अधिक दिखाना चाहता है। किन्तु जो नम्र है अर्थात् जिसका ईश्वरमें विश्वास है वह तो अपने अधिक कार्यको कम बताता है। वह अपने कार्यका मूल्य सदा कम आँकता है। इसलिए प्रचारकी शक्ति स्वतः कार्य में ही निहित होती है। इसीलिए यह कहा जाता है कि सत्य प्रकाशमें आये बिना नहीं रहता। यह बात पाप और पुण्य दोनोंपर लागू होती है। अपराध कितना ही छिपाया जाये प्रकट हुए बिना नहीं रहता। सूर्य छाबड़ेसे नहीं ढका जा सकता और हजारों सूर्योको इकट्ठा करके दूना कर देने से उनका जितना प्रकाश हो सकता है उससे अधिक तीव्र प्रकाश तो सत्यका होता है। तब हम अपने स्वयं प्रकाशित सत्यके संघर्षका प्रचार करनेके लिए समिति क्यों नियुक्त करें?

इस सिद्धान्तकी सचाईका नया प्रमाण अभी हालमें अमेरिकासे मिला है। अमेरिकामें बसे एक भारतीयने हमें ५७० रुपये इकट्ठे करके भेजे हैं। इतना ही नहीं