पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/२७६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिखाने के लिए तैयार हों वे अंग्रेजी राज्यकी सीमामें आ जायें और प्रतिज्ञापत्रपर हस्ताक्षर करके अपना नाम-धाम लिखा दें। काठियावाड़में तो स्वदेशी, अस्पृश्यता-निवारण, मद्यनिषेध, राष्ट्रीय शिक्षा और ऐसी अन्य पोषक प्रवृत्तियाँ ही चलाई जानी चाहिए। यही भाई लिखते हैं, “हम अनेक जगह खादी तो तैयार करने लगे हैं, किन्तु हम इतने नाजुक हो गये हैं कि खादी पहनना हममें से बहुतोंको पसन्द नहीं है। इसका परिणाम यह हुआ है कि अनेक स्थानोंमें खादी काफी मात्रामें इकट्ठी हो गई है, फिर भी आसपासके लोग मिलका बना अथवा विदेशी कपड़ा ही पहनते हैं।” यह समाचार दुःखजनक है। यह तो जैसे अपने यहाँ बाजरा होता हो किन्तु उसे त्यागकर दूसरी जगहसे चावल मँगाने जैसी बात हुई। हम अपनी इस कुटेवके कारण ही भिखारी और पराधीन होते आये हैं और यदि हमारी इस कुटेवमें सुधार न होगा तो हम और भी दरिद्र होते जायेंगे। जिस काठियावाड़ में कपास होती है, लाल गेहूँ होता है और बाजरा होता है, उस काठियावाड़को कपड़ा या अनाज बाहरसे मँगाना पड़े तो वह कैसे समृद्ध बना रह सकता है?

‘स्वराज्य आश्रम’

असमकी सिलचर जेलसे श्री फूकनने एक पत्र भेजा है। उसमें उन्होंने जेलका नाम रखा है―'स्वराज्य आश्रम।’ वे कहते हैं कि जो लोग स्वराज्य चाहते हों उन्हें जेल-रूपी स्वराज्य आश्रममें दाखिल किया जायेगा। वे लिखते हैं, “जबतक मानपूर्वक सुलह न हो तबतक हम जेल-निवासी लोग सुलह चाहते ही नहीं। स्वतन्त्रता क्या चीज है, उसकी कल्पना जेलमें बहुत ही सुन्दर होती है।”

कर देनेसे इनकार

करबन्दीके सम्बन्ध में गुजरातमें और शेष सारे भारतमें चर्चा चल रही है। परन्तु मैं ज्यों-ज्यों सोचता हूँ, मुझे त्यों-त्यों स्पष्ट होता जाता है कि हम अभी करबन्दी करने के योग्य नहीं हुए हैं। जो व्यक्ति रुपये बचाने के लिए कर न देना चाहता हो वह तो चोर है, और हम चोरोंकी मार्फत स्वराज्य नहीं लेंगे, क्योंकि वह तो चोर- राज्य होगा। हम जैसे लोगोंकी मार्फत स्वराज्य लेंगे, हमारा स्वराज्य वैसा ही होगा और वह उन्हींका राज्य होगा। इसीलिए मैं लोगोंसे कहता हूँ कि वे मेरी मार्फत भी स्वराज्य प्राप्त न करें। गांधीराज्य भी स्वराज्य नहीं होगा। अतः मेरी लालसा तो यही रहती है कि सब लोग मुझ जैसे अर्थात् कमसे कम जितना संयमी मैं हूँ उतने संयमी, सत्यवादी, दृढ़, आग्रही, उद्योगी, शान्त और निर्भय बनें। इससे हम जान सकते हैं कि हमें सहायता लेने में भी विचार करना चाहिए। मैं कई बार अपने साथियोंको चेताया करता हूँ कि उन्हें आतुर होकर चाहे जिस मनुष्यकी मदद नहीं लेनी चाहिए। उन्हें अपने साधन अधिकसे-अधिक शुद्ध रखने चाहिए। जो शल्य-चिकित्सक अपने औजारोंको ठीक नहीं रखता, उनकी धार तेज नहीं बनाये रखता वह कभी-कभी रोगीके प्राण ही ले बैठता है और उसे हमेशा व्यर्थका कष्ट पहुँचाता है। इससे हमें समझना चाहिए कि जबतक किसान शान्तिपूर्वक त्याग करना और देश-कार्यमें रस लेना नहीं