पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/२७५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५१
टिप्पणियाँ

तनिक भी अपमान अनुभव हो, जो नियम हमारे मनुष्यत्वका अपमान करनेके विचारसे ही बनाया गया हो उसको न मानना हमारा मूल सिद्धान्त है। जेलमें कई बातोंकी स्वतन्त्रता नहीं होती। सामान्यतः अनैतिक अपराध करनेवाले असभ्य लोग जेलोंमें जाते हैं। जेलोंको स्वतन्त्रताका द्वार तो अभी बनाया गया है। इसलिए उनके कुछ नियमोंको स्वतन्त्रताके पुजारी निश्चय ही नहीं मान सकते।

‘एक ही है’ इन शब्दोंका प्रयोग खुदा या ईश्वरके लिए ही किया जा सकता है, सरकार के लिए नहीं। जो कैदी धर्मको समझता है या जिसमें आत्मसम्मानकी भावना है, उसे “सरकार एक है” कहनेका हुक्म दिया जाये तो वह उस हुक्मको नहीं मान सकता। अतः उसे इस प्रकारके कानूनको निडर होकर तोड़ना ही चाहिए, चाहे ऐसा करनेपर उससे जेल में सख्तीकी जाये, उसे कालकोठरीमें बन्द किया जाये, उसे चाहे जितना कष्ट सहना पड़े, भले ही बेंत खाने पड़ें और भूखों मरना पड़े। इन सब कष्टोंको सहन करनेपर भी उसे इस प्रकारके नियमका सविनय अनादर करना ही चाहिए।

मैं तो इस अवसरका स्वागत करता हूँ। जेलकी बहुत-सी खराबियाँ इससे अपने-आप दूर हो जायेंगी। जेलमें भी जोर-जबरदस्तीसे काम करानेकी नीति किस हदतक चलती है इसका अनुभव हमें हो रहा है। इस राज्यका आधार उत्पीड़न है। जहाँ कुछ लोगोंकी खुशामद की जाती है और बहुत-से लोगोंको तकलीफ दी जाती है वहाँ राक्षसी नीतिका व्यवहार होता है ऐसी हमारी मान्यता है।

किन्तु जो बात जेलके बाहर लागू होती है वही जेलके भीतर भी लागू होती है। हमें जेलके भीतर भी विनययुक्त बलकी आवश्यकता है। एक ओर विनय चाहिए और दूसरी ओर पूरा बल। हर कार्य में हम विवेकसे काम लें तभी हमारा कार्य आगे बढ़ सकता है। हमें यह भी समझ लेना चाहिए कि जेलके अधिकारियोंकी स्थिति भी बहुत विषम है। उन्हें अपराधियोंके साथ रहना पड़ता है, इसलिए उनकी रीतिनीति में अशिष्टता होती है। उनमें कठोरता आ जाती है। सभ्य कैदियोंसे साबका पड़नेपर जेलके दरोगा और दूसरे अधिकारी अपना व्यवहार एकदम नहीं बदल सकते। जबतक जेलके नियम लागू हैं तबतक उन्हें उन नियमोंका पालन भी अवश्य करना है। इन कारणोंसे कुछ असुविधाओंको तो सहन ही कर लेना होगा। इसलिए हमें विरोध करते समय सदा विवेक और विचारसे काम लेना चाहिए। जैसे यदि हम “सरकार सलाम” शब्दोंका उच्चारण न करें तो भी हमें दरोगाको तो सलाम करना ही चाहिए। हमें उसका अदब करना चाहिए और जब वह आये तब खड़े हो जाना चाहिए। कैदी तो कैदी ही है। जेलमें जैसा व्यवहार किया जाना चाहिए और जिस मर्यादाका पालन किया जाना चाहिए उसे उस व्यवहार या मर्यादाको न भूलना चाहिए। अन्तमें हमें जेल के अधिकारियोंको अपने व्यवहारसे नरम बनाकर सरल स्वभावका और दयालु बनाना है।

काठियावाड़

एक भाई पूछते हैं, “क्या हम काठियावाड़में स्वयंसेवक भरती कर सकते हैं?” उनको मेरी सलाह है, “नहीं।” काठियावाड़के जो लोग स्वयंसेवकोंमें अपना नाम