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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसमें मर्यादाके पालनकी बहुत जरूरत है। सत्ताकी लूटमें तो सभी प्रथम रहना चाहते हैं, इसलिए सभी लड़ते हैं। सत्तामूलक राज्यमें जो प्रथम आ गया वही प्रथम रहता है। स्वराज्यमें जो पीछे आता है वह प्रथम रहता है। इस प्रकार इन दोनों में उतना ही अन्तर है जितना हाथी और घोड़ेमें अथवा पूर्व और पश्चिममें। यदि हम इतना याद रखें कि हम स्वराज्यकी लड़ाई लड़ रहे हैं तो हम सब मुश्किलोंको पार कर जायेंगे।

यदि महादेव देसाईके साथी इस भेदको ध्यानमें रखकर चलेंगे तो सब बातें सरल हो जायेंगी और असहयोगी कैदियोंको जेलमें शुद्ध स्वराज्य मिल जायेगा एवं उसकी सुगन्ध समस्त देशमें फैल जायेगी। यद्यपि महादेव देसाई घबरा रहे हैं, फिर भी मुझे विश्वास है कि वे और उनके साथी अन्य असहयोगी कैदी कोई अच्छा निर्णय[१] करके जेल में प्रातः चार बजे उठेंगे और अल्लाह और कृष्णका नाम जपकर जेलको पवित्र करेंगे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २२-१-१९२२
 

९९. टिप्पणियाँ

“सरकार एक है!”

सिन्धसे एक चिट्ठी आई है जिसमें यह खबर दी गई है कि सिन्धकी जेलोंमें कैदियोंसे कहलाया जाता है, “सरकार एक है” अथवा जब कोई अधिकारी आता है तब “सरकार एक है” की आवाज लगाई जाती है जिसे सुनकर सब कैदियोंको खड़े होना पड़ता है। दूसरी जगहसे खबर आई है कि वहाँ कैदियोंसे “सरकार सलाम” की आवाज लगवाई जाती है। सिन्धके नेता जयरामदासको, जो इस समय साबरमती जेलमें हैं, यह हुक्म दिया गया था कि जब कोई अधिकारी आये तो वे अपने पाँव मिलाकर खड़े हो जायें और हाथोंको इस तरह नीचे रखें कि उनके हाथोंकी हथेलियाँ दिखती रहें। उन्होंने इस हुक्मको नहीं माना, इसलिए उनको अखबार पढ़नेकी जो अनुमति दी गई थी वह वापस ले ली गई। कहीं-कहीं जेलों में जब कोई अधिकारी आता है तब कैदियोंको सिर झुकाकर और हाथ नीचे रखकर उकड़ें बैठने के लिए कहा जाता है।


यह पूछा गया है कि असहयोगी कैदियोंको ऐसे हुक्मोंको मानना चाहिए या नहीं। ‘यंग इंडिया’ में आदर्श कैदीके सम्बन्धमें जो लेख[२]लिखा गया है उससे लोगोंके मनमें यह शंका उत्पन्न हुई है। इसका समाधान तो सीधा है। जिस हुक्मको माननेमें

  1. महादेव देसाईने जेलमें सत्याग्रह भाश्रम, अहमदाबादकी तरह सामूहिक प्रार्थना आरम्भ की थी, इसपर कुछ कैदियोंने उसमें संस्कृतके श्लोक रखनेपर आपत्ति की थी।
  2. देखिए “आदर्श कैदी“, २९-१२-१९२१।