पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/२७३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४९
सुखमें दुःख

हम इन सब कामोंमें अपना उत्साह जितना कम करेंगे स्वराज्य मिलनेमें उतनी ही देर होगी।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २२-१-१९२२
 

९८. सुखमें दुःख

जिसमें विवेक और विचार है उसे आसानीसे शरीर-सुख नहीं मिल सकता। वह दूसरोंके दुःखसे दुःखी होता और सूखता रहता है। उसके समीप किसीको दुःख होता है तो उसको वह नहीं देख सकता। ऐसी ही करुण स्थिति महादेव देसाईकी हो गई है, क्योंकि वे अपने हरएक कार्यकी बहुत बारीकीसे जाँच करते हैं। जबतक उनको शारीरिक दुःख था तबतक वे सुखी थे, क्योंकि दुःख भोगनेकी खातिर जेल जाने के लिए वे तड़प रहे थे। किन्तु अब जब वे जेलमें सुखी रह सकते हैं और जब जेलर उनके अनुकूल है तब उनके सम्मुख यह मानसिक दुःख आ खड़ा हुआ। जैसी स्थिति महादेव देसाईकी है कुछ कम-ज्यादा वैसी ही स्थिति दूसरोंकी भी है। आगरा जिला जेलमें, जहाँ सब असहयोगी कैदी इकट्ठे किये गये हैं, जो चर्चा[१] आरम्भ हुई है, वह चर्चा वहाँ उस समय नहीं हो सकती थी जिस समय ये कैदी स्वयं कष्ट सह रहे थे और बेंत खा रहे थे। तब तो उन्हें दुःखके पहाड़के पीछेसे स्वराज्यका सूर्य निकलता हुआ दिखता था और उसकी गरमीसे वे अपना दुःख भूल जाते थे। किन्तु अब जब उन्हें जेलमें स्वराज्य मिला, स्वतन्त्रता मिली, तब जैसे लुटेरे लोग लूटके मालके लिए आपस में लड़ते हैं वैसे ही ये स्वराज्यके लुटेरे आपसमें लड़ रहे हैं। पाठक इस लड़ाईका वर्णन तो महादेव देसाईकी भाषामें ही पढ़ सकते हैं। यह पत्र उनके पहले पत्रकी तरह मैंने यहाँ शब्दशः नहीं दिया है। किन्तु कुछ वाक्योंको निकालकर जितना भाग जरूरी समझा है उतना दिया है। यह पत्र १५ तारीखको लिखा गया था।[२]

महादेवभाईके इस पत्रसे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। उससे यह स्पष्ट प्रकट हो जाता है कि हम जिस शिष्टता और मर्यादाका पालन इस लड़ाईके समय कर रहे हैं उसका पालन हम सत्ता प्राप्त होनेपर न कर सकेंगे।

सत्ता और स्वराज्यमें बहुत भेद है, यह हम समझ लें। इस समय हममें से बहुतसे लोग यह सारी खटपट केवल इस सत्ताके लिए ही कर रहे हैं। इस सत्ताकी लूटमें मुझे विघ्न और विक्षेप होते दिखते हैं। उसमें मुझे हिंसाके लक्षण दिखाई देते हैं। स्वराज्यकी लूटमें तो शुद्ध स्पर्द्धा ही हो सकती है। स्वराज्यका अर्थ है हरएकका अपने ऊपर राज्य। इस लड़ाईमें जो झुकता है और सहन करता है वह प्रथम आता है।

  1. चर्चाका विषय था असहयोग आन्दोलनके सम्बन्धमें गिरफ्तार किये गये राजनैतिक कैदियों में वर्गभेद विरुद्ध आन्दोलन किया जाना चाहिए या नहीं।
  2. यहाँ इस पत्रका अनुवाद नहीं दिया गया है।