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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी नहीं कर सकता। जबतक सरकार धारा-सभासे स्वतन्त्र, बिलकुल अलग चीज है तबतक दूसरा परिणाम हो ही नहीं सकता।

जबतक सेना और पुलिसपर अपना नियन्त्रण नहीं होता तबतक हम पराधीन ही रहेंगे। हममें से कुछ भोले लोग यह मानते हैं कि सेना और पुलिसपर नियन्त्रण प्राप्त करनेके लिए हमें सैनिक शिक्षण प्राप्त करना चाहिए और उसके द्वारा उपद्रव करनेवाले लोगोंपर नियन्त्रण स्थापित करना चाहिए। असहयोगी लड़ाईसे यह स्पष्ट होता है कि यदि हम सेनाका डर छोड़ दें तो हमें बन्दूक चलाना सीखे बिना नियन्त्रण मिल जायेगा। ऐसा नियन्त्रण प्राप्त करने के लिए हमें शान्तिसे चलना सीखना चाहिए और हिन्दुओं और मुसलमानोंके दिल साफ होने चाहिए। हममें नीतिका पालन बढ़ना चाहिए और हमारा आत्म-विश्वास भी बढ़ना चाहिए।

हममें अभी यह विश्वास पर्याप्त रूपमें नहीं आया है। अपनी इस कमजोरीके कारण ही मैंने सम्मेलनमें मालवीयजीसे यह कहा था कि वाइसराय सम्मेलन बुलायेंगे तो मैं जाऊँगा अवश्य, किन्तु हमारे पास वह सामग्री नहीं है जो हमारे संकल्पकी पूर्ति के लिए आवश्यक है; हमें अभी उपद्रवी लोगोंपर और उपद्रवकी वृत्तिपर नियन्त्रण प्राप्त नहीं हुआ है। मद्रासमें हड़ताल तो हुई, किन्तु उपद्रवी लोगोंने तुरन्त अपने स्वभावका परिचय दिया।<ref>देखिए “मद्रासमें गुण्डागर्दी”, १९-१-१९२२। उपद्रवी लोगोंने एक गरीब सिनेमा-मालिकको सताया और सर त्यागराज चेट्टियारके घरको घेर लिया। ये लोग भी असहयोगी समझे जाते हैं। ये भी हड़तालमें शामिल थे। स्वयंसेवक उनको समझाने में असमर्थ रहे। इस घटनाका अर्थ यह हुआ कि जब सरकार सत्ता छोड़ देगी तब हमारी सत्ता न चलेगी, बल्कि उपद्रवी लोगोंकी सत्ता चलेगी। इस प्रकार यदि संकटके समयमें उपद्रवियोंकी सत्ता ही चले तो असहयोगियोंकी जीत कैसे होगी? इस कारण जबतक उपद्रवियोंपर हमारा पूरा प्रभाव नहीं जमता तबतक हमें स्वराज्य पानेकी आशा छोड़ ही देनी चाहिए।

किन्तु हम यह आशा कैसे छोड़ सकते हैं? जहाँ लोग बेंत खानेकी शक्ति प्राप्त कर रहे हैं, जहाँ लोग जेलमें कष्ट सहने की शक्ति प्राप्त कर रहे हैं वहाँ लोगोंको पूरी सत्ता अवश्य ही मिलेगी। जरूरत केवल इतनी है कि हम अपनी कष्ट-सहनकी सामर्थ्य और बढ़ा लें। हमें अपने मन अभी और साफ करनेकी जरूरत है। हमें सविनय अवज्ञाके ‘सविनय’ और ‘अवज्ञा’ इन दोनों पक्षोंपर पूरा जोर देना है। हमें अवज्ञा करनी है और विनय कायम रखनी है। विनयके बिना अवज्ञा करनेसे हमारा नाश हो जायेगा। सविनय अवज्ञा करनेसे हमारी रक्षा होगी।

जो कुछ हुआ उसके फलस्वरूप हमें इतना ही करना है कि हम ज्यादासे- ज्यादा ३१ जनवरी तक अपनी सामुदायिक सविनय अवज्ञा बन्द रखें। हमें उसके अतिरिक्त अन्य किसी भी प्रवृत्तिको बन्द नहीं रखना है। हमें स्वयंसेवकोंकी भरती जारी रखनी है। हमारी स्वदेशीकी प्रवृत्ति एक क्षण भी