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९७. सर्वदलीय सम्मेलन

भारतभूषण पण्डित मदनमोहन मालवीयने जो सर्वदलीय सम्मेलन बुलाया था, वह समाप्त हो गया। अब हम उसके निष्कर्षोंकी जाँच करते हैं।

जो लोग यह मानते हैं कि असहयोगी ऐसे सम्मेलनमें जाकर क्या करेंगे, कहा जा सकता है कि वे असहयोगके तत्त्वको नहीं समझते। असहयोगी सहयोगका कोई भी अवसर हाथसे नहीं जाने देता। हाँ, वह यह विचार अवश्य करता है कि ऐसे हर अवसरसे उसके कार्यको बल मिलता है या नहीं। जितनी शान्तिपूर्ण प्रवृत्तियाँ होती हैं उन सबका अस्तित्व लोकमतपर अवलम्बित है। जो अपने मतका प्रचार शान्तिसे ही करना चाहता है उसके लिए न्यायके अतिरिक्त अन्य कोई बल नहीं होता, इसलिए वह जिसे सत्य मानता है उसे हरएक मनुष्यको बतानेको तत्पर रहता है। इस स्थितिमें जब असहयोगियोंको सम्मेलनमें आनेका निमन्त्रण दिया गया तब उस निमन्त्रणको स्वीकार करना उनका कर्त्तव्य था।

किन्तु सम्मेलन में जानेपर भी वे उससे अलग रहे। उन्होंने उसमें अपना कोई मत नहीं दिया। असहयोगी तटस्थ लोगोंको दोनों पक्षोंके बीच दूत अथवा बिचौलियोंके रूपमें प्रयुक्त करनेके लिए तैयार थे, और मेरे खयालसे यही ठीक भी था। असहयोगियोंने नियमपूर्वक कार्रवाई करके सम्मेलनमें बोलनेके लिए एक मुझको ही भेजनेका निश्चय किया। इससे उन्होंने कांग्रेसकी कीर्ति बढ़ाई और लोगोंका समय बचाया। ऐसे सम्मेलनमें असहयोगियोंको अपनी बात कहने की बजाय दूसरोंकी बात अधिक सुननी थी। इस तरीकेपर अमल करनेसे नम्रताकी रक्षा हुई, और एक-दूसरेसे कोई कहा- सुनी नहीं हुई और कार्रवाई अच्छी तरह निपट गई।

सर शंकरन् नायर अकारण ही नाराज हो गये। इसमें पहला कारण मेरा रुख था।[१] मैंने एकके-बाद-एक जो शर्तें सामने रखीं वे उन्हें अच्छी नहीं लगीं। उन्होंने इसी बातपर सम्मेलनसे चले जानेकी इच्छा प्रकट की। किन्तु उन्होंने जब यह देखा कि उनकी बात मालवीयजी, श्री जिन्ना और दूसरे लोगोंको पसन्द नहीं आई तो वे चुप हो गये। किन्तु जब खिलाफती फतवेके कैदियोंको छोड़नेकी बात आई तब उनसे नहीं रहा गया और वे वहाँसे उठकर चले गये।

वे स्पीकर नियुक्त किये गये थे। सभाका अध्यक्ष तो कोई पक्ष ग्रहण कर सकता है, किन्तु स्पीकरको ऐसा करनेका अधिकार नहीं होता। स्पीकर तो केवल सभाकी कार्रवाईको नियमपूर्वक चलानेके लिए ही नियुक्त किया जाता है। स्पीकरको अपनी राय देनेका हक ही नहीं है। इसलिए सर शंकरन् नायरको तो चुप ही रहना उचित था। इसकी बजाय वे स्वयं बीचमें पड़े और अन्तमें स्पीकरकी कुर्सी छोड़कर चले गये। इस बातसे सभी लोगोंको दुःख हुआ, किन्तु इससे न तो किसीको निराशा हुई

  1. देखिए परिशिष्ट १।