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९२. टिप्पणियाँ

कर-बन्दी

कुछ स्थानोंमें में करोंकी अदायगी बन्द करके सामूहिक सविनय अवज्ञा शीघ्र आरम्भ करनेकी इच्छा देखता हूँ। किन्तु मैं इस खतरनाक साहसिक कार्यको शुरू करनेसे पहले बहुत ही ज्यादा सावधानीका आग्रह करूँगा। हमें हिंसाकी सम्भावनाके प्रति उदासीन नहीं होना चाहिए, और इस बातकी तरफसे अपना पूरा इत्मीनान कर लेना चाहिए कि जनता अपनी फसल और पशु या अपनी सम्पत्ति जब्त होते देखकर भी आत्म-संयमसे काम लेगी। मैं जानता हूँ कि करोंकी अदायगी बन्द करना सरकारको सबसे जल्दी उलटनेका एक तरीका है। लेकिन उसी तरह मैं यह भी निश्चित रूपसे जानता हूँ कि कर-बन्दीका सफल आन्दोलन चलाने योग्य पर्याप्त शक्ति और अनुशासन अभी हमने नहीं हासिल किया है। शायद बारडोली या उससे कुछ कम हदतक आनन्दके अलावा भारतमें एक भी तहसील इसके लिए अभी तैयार नहीं है। ऐसी तहसीलोंकी पचास प्रतिशत से अधिक आबादीको अस्पृश्यताके दोषसे मुक्त होना चाहिए और तहसीलमें तैयार की गई खादी पहननी चाहिए। मन, वचन, कर्ममें अहिंसात्मक होना चाहिए और उतना ही जरूरी यह है कि वहाँकी जनता, वे चाहे सहयोगी हों या असहयोगी, सबके साथ मित्रताका व्यवहार रखती हो। आवश्यक अनुशासनके बिना कर-बन्दी करना अक्षम्य पागलपन होगा। इससे स्वराज्यके बजाय अराजकता फैलनेकी सम्भावना है। इसलिए मैं उस चेतावनीको फिर दुहरा दूं जो में बार-बार दे चुका हूँ कि पहले तो सामूहिक सविनय अवज्ञा मेरी व्यक्तिगत निगरानीके सिवा नहीं की जानी चाहिए, और निश्चय ही दिल्लीमें[१] उसके लिए रखी गई शर्तें पूरी किये बिना तो कभी नहीं की जानी चाहिए।

‘सरकार सलाम’

सिन्धसे आया वह पत्र मैं उद्धृत कर चुका हूँ जिसमें बताया गया है कि हैदराबादमें बन्दियोंसे किस बातकी अपेक्षा की जाती है।[२] एक तार नोआखालीसे मिला है जिसमें यह पूछा गया है कि असहयोगी बन्दियोंको “सरकार सलाम”, यह वाक्य बोलना चाहिए या नहीं। मेरे विचारमें यह वाक्य तथा “सरकार एक है”, ये दोनों ही वाक्य अपमानजनक हैं, और इनमें से दूसरा तो धर्मकी दृष्टिसे भी अनुचित है। धार्मिक प्रवृत्तिका कोई भी व्यक्ति न तो यह कह सकता है और न विश्वास ही कर सकता है कि सरकार केवल एक है। यह बात केवल ईश्वरके लिए और अकेले उसीके लिए कही जा सकती है। इसलिए जहाँ मैं राजनीतिक बन्दियोंको यह सलाह दूँगा कि

  1. देखिए खण्ड २१ पृष्ठ. ४३२-३५।
  2. देखिए “मार्शल लॉसे भी बदतर”, १९-१-१९२२।