पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/२६१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३७
मद्रास में गुण्डागर्दी

 

स्थानोंपर थे और हमने दंगा होते-होते रोका। दोष किसी खास पक्षको नहीं दिया जा सकता। जो लोग जनमतकी अवज्ञा करते हैं बस भीड़ उनके खिलाफ क्रोधसे भर उठती है। परन्तु फिर भी गांधी पार्टीके प्रतिनिधियोंका एक मीठा शब्द, एक विनम्र उलाहना उन्हें शान्त कर देता है। हथियारबन्द सैनिकों की उपस्थिति उन्हें उत्तेजित करती है। शहर में एक छोटे लड़के की जाँघमें संगीन घोंप दी गई थी। कोई और दुर्घटना अभीतक हमारे सुननेमें नहीं आई है। अभी-अभी, यह सब लिखते हुए, में सुन रहा हूँ कि माउंट रोडके पास दो आदमियोंपर गोली चलाई गई है...'
गवर्नर लॉर्ड विलिंग्डन और मन्त्रि-पद स्वीकार करनेवाले पक्षके प्रमुख सर पी० त्यागराज चेट्टी खुद नगरके केन्द्रीय भाग, कोतवाल बाजारमें गये। उन्होंने सैनिक सहायताका वचन दिया। ...
बादमें, मैं पैदल माउंट रोड गया। दुर्घटनास्थल ‘वेलिंग्टन’ नामका एक पारसी सिनेमाघर था। सिनेमाके सामने एक क्रुद्ध भीड़ इकट्ठी हो गई और कुछ पत्थर फेंके गये। एक पारसीने ऊपरको मंजिलसे भीड़पर गोली चला दी। भीड़में से एक आदमी वहीं मर गया और जैसा कि मुझे बताया गया, वो जख्मी हो गये। इसपर भीड़ उत्तेजित होकर सिनेमापर टूट पड़ी और अन्दर घुसकर उसने खिड़कियाँ और फर्नीचर वगैरा तोड़ डाला। कुछ देर बाद उसपर काबू पा लिया गया और अब पूरे इलाकेमें फौज तैनात है। घुड़सवार सेना और बख्तरबन्द गाड़ियाँ गश्त कर रही हैं। यह सड़क ऐसी है जिससे युवराजको आना-जाना है। लेकिन अब युवराजका मार्ग बदलकर समुद्र-तटके साथ-साथ कर दिया गया है।
मुझे अभी-अभी सूचना मिली है कि भोड़ने सर त्यागराज चेट्टीको उनके मकान में घेर लिया है। आज युवराजके आगमन के समय वे कौंसिलमें भी भाग नहीं ले सके। . . . पर मुझे इस बातकी प्रसन्नता है कि कोई ज्यादा खराब बात नहीं हुई। मैं समझता हूँ कि उन्हें शारीरिक रूपसे कोई नुकसान नहीं पहुँचा है और न ऐसी आशंका ही है।

डा० राजनका यह पत्र मैंने मद्रासको हड़तालकी सफलतापर बधाई देनेके लिए उद्धृत नहीं किया है, बल्कि हड़तालके दिन हुई गुण्डागर्दीपर शोक प्रकट करनेके लिए उद्धृत किया है। यदि हड़ताल न होती और गुण्डागर्दी न होती तो ज्यादा अच्छा होता। यह कहनेसे कि यह निरंकुश बरबादी गुण्डोंकी करतूत थी, कोई बचाव नहीं होता। क्योंकि यह इस बातका पूरा प्रमाण है कि असहयोगी मद्रासमें स्वराज्यके योग्य नहीं हैं। जो उसकी योग्यताका दावा करते हैं उन्हें हिसाकी सभी शक्तियोंको काबू में रखने योग्य होना चाहिए। हड़ताल शान्तिपूर्ण नहीं थी, क्योंकि जो कुछ बेचारे सिनेमावालेके साथ हुआ वही दूसरोंके साथ भी होता यदि उन्होंने अपनी दूकानें खोलनेकी हिम्मत की होती। सिनेमावाले का गोली चलाना में इसलिए उचित समझता हूँ कि