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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पहले से भी अधिक आवश्यक हो गया है । युवराजके स्वागतके प्रति विरोध-प्रदर्शनकी भावना अब गौण हो गई है । अब तो अपने नेताओंके गौरव और सम्मानके लिए कलकत्ते के लोगोंको पूरी हड़ताल करना आवश्यक हो गया है । इससे अपने नेताओंके प्रति उनकी निष्ठा सिद्ध होगी और यह भी सिद्ध होगा कि वे स्वयं भी अपने मतके अनुसार आचरण करनेमें समर्थ हैं । मुझे आशा है कि कलकत्तेकी जनता आगामी २४ दिसम्बरको अपने इस स्पष्ट कर्त्तव्यका पालन करनेमें नहीं चूकेगी और इस समय जब हमारे नेता जेल जा चुके हैं, शान्ति-रक्षाके लिए हरएक असहयोगी स्वयं नेता बन जायेगा । सबसे अच्छा तो यह हो कि २४ तारीखको वे अपने घरोंमें रहें और सिर्फ स्वयंसेवक ही बाहर रहें । स्वयंसेवकोंका कर्त्तव्य होगा कि वे उन लोगोंको किसी तरहकी हानि न पहुँचने दें, जिन्होंने उस दिन दुकान खोले रखना तय किया हो । यह तो गृहीत ही है कि कांग्रेस और खिलाफत समितियोंके नये पदाधिकारियोंका चुनाव हो गया होगा । हमारी सच्ची कसौटीका समय तो यही है । आज नेतृत्व ग्रहण करना वैसा ही है जैसा कि आयरलैंड के स्वर्गीय शहीद मैक्स्विनीका' लॉर्ड मेयरका पद ग्रहण करना था । क्योंकि नेता-पदपर प्रतिष्ठित होनेके साथ-ही-साथ तुरन्त जेल जानेकी जिम्मेदारी भी आ जाती है । यदि सचमुच राष्ट्रका उत्थान हो चुका है तो नेताओं और उनके अनुगामियोंका प्रवाह बराबर उमड़ता रहेगा । सरकार हमसे जितनी चाहे हम बराबर उसे अपनी ही आहुतियाँ देते रहें । और जैसे ही हम सरकार की यह माँग पूरी कर देने योग्य सिद्ध हुए, हमें विजय मिल जायेगी ।

सबके जेल जानेकी उपयोगिता

हम सब लोगोंको अपने जेल जानेके औचित्यके विषयमें सन्देह नहीं होना चाहिए । यदि इसके लिए जितने लोग चाहिए उतने आगे न आयें तो हमें साहसपूर्वक अपना अल्पमत में होना स्वीकार कर लेना चाहिए और फिर यदि हममें अपने कार्यक्रमपर निष्ठा है तो हमें चाहिए कि हम वचनसे नहीं अपने कर्मसे उसका प्रसार करके इस अल्पसंख्याको बहुसंख्या में परिणत कर लें । हमें अच्छी तरह जान लेना चाहिए कि तिल-भर आचरणका मन-भर उपदेशसे अच्छा होनेकी बातमें कितना बल है । नये साधनों की खोज में समय बरबाद करनेकी अपेक्षा उपलब्ध साधनोंका उपयोग करना सही अर्थशास्त्र है । यदि हम अपने मौजूदा साधनों का उपयोग करते रहें तो नये साधन अपने-आप जुट जायेंगे । यदि यह भी मान लिया जाये कि लोग जेल जानेके लिए आगे नहीं आयेंगे, तो इतना तो निश्चित है कि जो जेल नहीं जाना चाहते वे कामका कोई दूसरा तरीका स्वयं ढूँढ लेंगे । इसमें कमसे-कम सत्यशीलता तो होगी । भारतके जो लोग कष्ट सहन करते हुए असहयोग करने के कायल हैं, वे पूरी तरह उस मार्गका अवलम्बन करेंगे । यदि हम बीसों दफा जेल जायें और फिर भी जेल जानेवालों की तादाद न बढ़े तो मैं तो उस समय भी यही कहूँगा कि "हमको अपना प्रयत्न तबतक बराबर जारी

१. आयरलैण्डके देशभक्त और काकँके लॉर्ड मेयर । आयरलैण्डकी मुक्तिके लिए १९२० में ६५ दिनके आमरण अनशनके बाद उनका देहावसान हुआ ।