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मालवीय परिषद्

वगैर उनको पहले नोटिस दिये ही बन्द कर दी गई थी। मुझे विश्वास है कि सेवा विधान (सर्विस रेग्युलेशन्स) में यह अवश्य लिखा है कि किसी भी पदाधिकारीका नाम, फिर वह चाहे कितना ही उच्च क्यों न हो, यह पाये जानेपर कि उसने अपने कर्त्तव्यकी घोर अवहेलना की है अथवा किसी प्रकारका अराजभक्तिपूर्ण काम किया है, पेंशन-सूचीमें से एकदम निकाल दिया जायेगा। कुछ भी हो सरकारको चाहिए कि वह इन अफसरोंकी पिछली सेवाओंके गीत गाये बिना पंजाबकी माँगोंको नामंजूर करनेकी न्याय्यता सिद्ध करे। यदि यह भी मान लिया जाये कि भारतके प्रति कर्त्तव्यकी अवहेलना और साम्राज्यकी सेवा साथ-साथ चल सकती हैं तो भी उन्होंने भारतको जो हानि पहुँचाई है उसे देखते हुए मैं यह नहीं मान सकता कि उन्होंने साम्राज्यकी कुछ सेवा की है। मैं इन दोनोंको एक ही तराजूपर तोलने के लिए तैयार नहीं हूँ।

स्वराज्य योजना निःसन्देह एक ऐसी चीज है जिसपर भिन्न-भिन्न मत होंगे―जितने व्यक्ति उतने ही मत। यह तो मुख्यतः एक ऐसी बात है जिसपर एक सभामें विचार किया जाना आवश्यक है। और वहाँ भी सबको अपने-अपने विचार साफ तौरपर प्रकट करने चाहिए। किसीको कोई बात अपने दिलमें दबाकर नहीं रखनी चाहिए। सबके दिलोंमें ‘भारतकी स्वतन्त्रता’ ही सर्वोच्च हेतु होना चाहिए। भले ही ब्रिटिश जनताको चाहे इस तरफ ध्यान देनेकी फुरसत न हो, कॉमन्स सभा इस विषयमें उदासीन हो, और लॉर्ड्स सभा इसके प्रति विरोध-भाव रखती हो, पर ये बातें इसमें बाधा बनकर उपस्थित नहीं हो सकतीं। भारतका कोई भी प्रेमी इन अवान्तर बातोंको विचारमें नहीं लायेगा। उसका ध्यान तो सिर्फ एक ही बातपर रहेगा; वह तो सिर्फ यही सोचेगा कि क्या भारत जो कुछ चाहता है वह उसके लिए तैयार है? या वह एक बालककी तरह कोई ऐसी वस्तु माँग रहा है जिसे पचाना उसकी शक्तिके बाहर है? इस बातका निश्चय तो केवल भारतीय ही कर सकेंगे, बाहरी लोग नहीं।

इस दृष्टिसे सोचनेपर पूर्ण स्वराज्यकी योजना तैयार करने के लिए किसी ऐसी सभा करनेका विचार में अवश्य ही इस समय अनुपयुक्त मानता हूँ। भारत अपनी शक्तिका कोई अकाट्य प्रमाण अभीतक नहीं दे पाया है। माना कि उसने भारी कष्ट उठाया है; किन्तु अभी अपने ध्येयके गौरवकी दृष्टिसे उसे और भी कष्ट सहन करना बाकी है। अभी उसे और भी अधिक अनुशासित बननेकी आवश्यकता है। परिषद्के प्रस्तावोंमें असहयोगियोंको एक पक्षकी तरह न रखे जानेके प्रति मैं खास तौर- पर सजग था; क्योंकि अभी हममें बहुत कमजोरियाँ बाकी हैं। जब भारतमें आत्मनियन्त्रणके साथ बल-संचार हो जायेगा तब मैं खुद ही वाइसरायका दरवाजा खट-खटाऊँगा और कहूँगा कि परिषद् बुलाइये। और मुझे मालूम है कि वाइसराय, फिर वे चाहे कोई प्रसिद्ध कानूनदाँ हों या बड़े नामी फौजी पुरुष, प्रसन्नताके साथ उस अवसरका लाभ उठायेंगे। मुझे अपनी कमजोरीका भान है, इसलिए मैं सीधा उनके पास नहीं जाता। परन्तु चूँकि मैं विनयशील हूँ, इसलिए मैं नरम दलवाले अथवा अन्य मित्रोंके माध्यमसे यह साफ-साफ प्रकट किये दे रहा हूँ कि मैं प्रामाणिक परिषद् या परामर्श के