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मालवीय परिषद्

खिंचा हुआ जान पड़ा। निष्पक्ष लोगोंसे मैंने यह अपेक्षा की थी कि वे अपना यह मत दृढ़ता के साथ प्रकट करेंगे कि असहयोगकी कार्यविधिके सम्बन्धमें हमारा चाहे कितना ही मतभेद क्यों न हो, प्रजाकी स्वतन्त्रता तो हम सभीकी समान विरासत है। और स्वत्वकी माँगपर दृढ़ रहना भी तीन-चौथाई स्वराज्यके बराबर है; और इसलिए यदि आवश्यकता पड़ी तो हम कानूनकी सविनय अवज्ञा करके भी उसकी रक्षा करना चाहेंगे।

चूँकि मालवीय परिषद्का ध्यान इस विषयकी ओर नहीं खींचा जा सका और उसमें गोलमेज परिषद्की ही चर्चा होती रही इसलिए विचार-विनिमय इसी बातपर चल पड़ा कि उक्त परिषद् के लिए कौन-कौन-सी बातें परमावश्यक होंगी।

स्वयं मेरी स्थिति तो वहाँ स्पष्ट थी। मैं एक व्यक्तिकी हैसियतसे, बिना किसी शर्तके, किसी भी परिषद् में जा सकता हूँ। मैं तो एक सुधारक हूँ; और सुधारककी हैसियत से मेरा यह काम ही है कि जो लोग मेरा कथन सुनने के लिए तैयार हों उनके पास मैं जाऊँ और जिन विचारोंको मैं ठीक समझता हूँ, उन्हें भी उनका कायल करूँ। पर जब मुझसे यह कहा गया कि गोलमेज परिषद् तभी सफल हो सकती है जब देशका वातावरण उसके अनुकूल हो; अतएव ऐसी अनुकूलताके लिए जिन शर्तोंकी आवश्यकता है उन्हें पेश कीजिए, तब मुझे कुछ शर्तें लिखानी पड़ीं। और में मंजूर करता हूँ कि प्रस्ताव-समितिने मेरी बातोंको अधिकसे-अधिक सहानुभूतिके साथ सुना और समझा तथा उन्हें मान सकने की हर तरह कोशिश की। परन्तु इसके साथ ही मैंने देखा कि उसने सरकारकी कठिनाइयोंपर भी खूब ध्यान दिया। उसकी यह प्रवृत्ति स्तुत्य ही थी। यदि परिषद् में सरकारकी ओरसे भेजे गये राज्य प्रतिनिधि उपस्थित होते तो इसमें कोई शक नहीं कि उस अवस्थामें भी सरकारके पक्षकी बातें इससे अधिक अच्छी तरह पेश नहीं की जा सकती थीं।

इसका परिणाम समझौतेके रूपमें सामने आया। सरकार नये हुक्मोंको वापस ले और उनके अनुसार जिन-जिन लोगोंको सजाएँ दी गई हैं उनको तथा फतवा कैदियोंको अर्थात् अलीभाइयों तथा दूसरे सज्जनोंको जिन्हें फौजी नौकरी-सम्बन्धी फतवेके मामले में सजा दी गई है, छोड़ दे यह तो हम दोनोंको मंजूर था। परन्तु समितिसे यह भी कहा गया था कि कुर्कीके वारंट मन्सूख कर दिये जायें, जो जुर्माना छापेखानों इत्यादिसे वसूल कर लिया गया है वह लौटा दिया जाये, तथा मामूली कानूनकी ओटमें जिन लोगोंको अहिंसात्मक तथा दूसरे सीधे-सादे काम करनेके कारण सजाएँ दी गई हैं वे भी, उनके कार्योंके अहिंसात्मक होने के प्रमाण मिलनेपर, छोड़ दिये जायें। समितिने देखा कि इन मांगोंमें भी बहुत-कुछ सार है। मैंने यह सुझाव पेश किया कि इसके लिए परिषद् एक समिति नियुक्त कर दे। परन्तु प्रस्ताव समितिने जब यह प्रकट किया कि सरकारके लिए ऐसी मनमानी सिफारिशोंको मंजूर करना कठिन होगा, पंचायत सिद्धान्त के लिए राजी हो गया और वह उस प्रस्तावमें जोड़ दिया गया। दूसरा समझौता धरना देनेके सम्बन्धमें है। मेरा कहना यह था कि यदि गोलमेज परिषद् बुलानेका निश्चय किया जाये तो असहयोगकी सारी विरोधात्मक हलचल बन्द