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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किया है और आज वे इस बातके जितने कायल हैं उतने कायल कभी नहीं थे कि भारतकी परिस्थितियाँ ऐसी हैं कि उसकी मुक्तिका एकमात्र मार्ग अहिंसा ही है।

सर शंकरन्ने मुझपर आरोप लगाया है कि मैंने एक वर्षमें स्वराज्य दिलानेका वादा किया था। उनसे ऐसे अज्ञानकी तो अपेक्षा नहीं थी। अगर मैंने ऐसा कोई वादा किया होता तो आज अपना सिर अपने धड़पर लिये घूमता न फिरता। मैंने जो कुछ कहा था वह सिर्फ यह था कि अगर भारत १९२० में कलकत्तामें[१] स्पष्ट रूपसे पेश की गई और फिर नागपुरमें दुहराई गई[२]शर्तोंको पूरा कर दे तो वह एक सालमें बल्कि इससे भी कम समयमें स्वराज्य प्राप्त कर सकता है।

अन्तमें सर शंकरन् की एक और भूल सुधार दूँ। अली-बन्धुओंका मामला पंच फैसलेके सुपुर्द किये जानेवाले मामलोंमें नहीं आता, लेकिन अली-बन्धु भी फतवा कैदियोंमें शामिल हैं, इसलिए उनका मामला भी उसी श्रेणीमें आ जाता है जिस श्रेणीमें अभी हालकी विज्ञप्तियोंके अनुसार पकड़े गये लोगोंके मामले आते हैं। मुझे यह देखकर आश्चर्य होता है कि सर शंकरन् सोचते हैं कि अली-बन्धुओंकी उपस्थितिके बिना भी गोलमेज सम्मेलन हो सकता है। लेकिन मैं यह समझ सकता हूँ कि सरकारसे अपने इतने जबरदस्त विरोधियोंको जेलसे रिहा करते न बन रहा हो और वह उन्हें तभी छोड़ेगी जब उसकी इच्छा भारतीयोंको तुष्ट करनेकी हो और उसका इरादा बाहुबलके स्थानपर जनमतके बलको प्रतिष्ठित करनेका हो।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, १८-१-१९२२

८८. मालवीय परिषद्

बम्बई में श्री मालवीयजी आदिने जिस मध्यस्थ परिषद्का आयोजन किया था वह हो चुकी है। उसे सफल और असफल दोनों कहा जा सकता है। जहाँतक उसका सम्बन्ध उपस्थित सज्जनोंकी इस उत्कट अभिलाषासे था कि वर्तमान झगड़ेका निपटारा शान्तिके साथ किया जाये, तथा जहाँतक उसके द्वारा परस्पर भिन्न मत रखनेवाले लोगोंको एक ही मंचपर लाये जा सकनेका सवाल था, वहाँतक तो उसके काममें सफलता प्राप्त हुई है। परन्तु उसमें कुछ प्रस्ताव स्वीकृत कर लिये जानेके बावजूद वह मेरे चित्तपर यह प्रभाव अंकित न कर सकी कि जो लोग वहाँ एकत्र हुए वे समष्टि रूपसे वास्तविक प्रश्नकी गम्भीरता और गुरुताको अनुभव करते हैं। इस दृष्टिसे वह असफल हुई। भाषण स्वातन्त्र्य, सम्मेलन स्वातन्त्र्य तथा मुद्रण स्वातन्त्र्यके हकोंपर जोर देनेकी अपेक्षा, जो कि प्रजाके अधिकार हैं और जो कि गोलमेज परिषद्से भी अधिक महत्त्वपूर्ण हैं, परिषद्का मन गोलमेज परिषद् के आयोजनकी ओर अधिक ही

  1. सितम्बरके कांग्रेस अधिवेशनमें।
  2. दिसम्बरके कांग्रेस अधिवेशनमें।