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भेंट: ‘बॉम्बे क्रॉनिकल’ के प्रतिनिधिसे

 

मेरे और सम्मेलनके बीच मतभेद होते हुए भी पूरा तालमेल था। मैं यह स्पष्ट कहना चाहता हूँ कि जो सवाल बहुत महत्त्व नहीं रखते थे, उनपर मैंने जरा भी हिचकिचाये बिना सम्मेलनका दृष्टिकोण स्वीकार कर लिया। जो प्रस्ताव पास किये गये वे आपस में बहस-मुबाहिसा और विचार-विमर्श करके ही पास किये गये। यह निस्सन्देह सच है कि मैं चाहता हूँ सरकार पश्चात्ताप करे, लेकिन इसका कारण यह नहीं है कि मैं उसे अपमानित करना चाहता हूँ। इसके पीछे मेरा उद्देश्य यह है कि वह जनतासे अपना सम्बन्ध ठीक करे, और यह तो निश्चित है कि जबतक सरकार अपनी गलती स्वीकार करके अपने कदम वापस नहीं लेती, देशमें शान्ति नहीं हो सकती; और कोई समझौता या निपटारा भी नहीं हो सकता। सम्मेलनके प्रस्तावोंसे सरकारको सहायता मिलती है कि वह शोभन ढंगसे वैसा कर सके। सरकारको हिंसात्मक कार्रवाइयोंका दमन करनेका अधिकार है और उसके उस अधिकारपर कोई आपत्ति नहीं करता। श्री जहाँगीर बी० पेटिटके प्रश्नके उत्तरमें मैंने जो कहा था, वह सर शंकरन् भूल गये हैं। मैंने कहा था कि अगर जनताकी सुरक्षाके लिए और जनमतके समर्थनसे मार्शल लॉ लागू किया जाये तो ऐसा उचित मार्शल लॉ लागू करनेकी बात भी मैं मान सकता हूँ। अभी सरकारने जो तरीका अपना रखा है उसमें मार्शल लॉकी सभी खूबियाँ हैं, सिर्फ उसे यह बदनाम नाम नहीं दिया गया है। उसका उद्देश्य न तो जनताको सुरक्षा देना है और न उसे जनमतका कोई समर्थन प्राप्त है। उसका उद्देश्य एक सर्वथा गैरजिम्मेदार नौकरशाहीकी सत्ताको मजबूत बनाना है। खिलाफत सम्बन्धी माँगमें सीरियासे फ्रांसका हटना, निस्सन्देह, शामिल है, इसलिए इस सम्बन्धमें मैंने क्या कहा था, वह सर शंकरन्‌को भूलना नहीं चाहिए। मैंने अत्यन्त स्पष्ट शब्दोंमें कह दिया था कि अगर ग्रेट ब्रिटेन सीरियाके बारेमें मुसलमानोंके दावेका ईमानदारीसे समर्थन करे तो मैं उतनेसे ही सन्तुष्ट हो जाऊँगा। मैंने कहा कि मुसलमानोंको और साथ ही मुझे भी टर्कीके राष्ट्रवादियोंकी आकांक्षाओं और भारतीय मुसलमानोंकी न्यायसम्मत माँगोंके बारेमें ग्रेट ब्रिटेनके इरादों में तनिक भी विश्वास नहीं है। अब अगर सरकार करा सके तो गोलमेज सम्मेलनमें असहयोगियोंको यह प्रतीति कराये कि ग्रेट ब्रिटेन मुसलमानोंकी माँग पूरी करनेके लिए अपनी शक्ति-भर सब कुछ करनेको तैयार है। सर शंकरन्ने यह कहकर कि मैं चाहता हूँ, शान्तिकी शर्त के रूपमें मिस्रको खाली कर दिया जाये, न अपने प्रति न्याय किया है और न मेरे प्रति। बात यों हुई कि एकाएक किसीने मिस्रकी चर्चा कर दी थी। उसीके उत्तरमें मैंने कहा था कि यद्यपि खिलाफत सम्बन्धी माँगमें मिस्रका खाली किया जाना शामिल नहीं है और न हो सकता है, फिर भी जब भारतको पूर्ण स्वराज्य मिल जायेगा तब वह निश्चय ही बहादुर मिस्रियोंसे विदेशी अधीनता स्वीकार करानेके लिए उनको दबाने के उद्देश्यसे अपना एक भी सिपाही देशसे बाहर नहीं जाने देगा।

सर शंकरन्‌का अली-बन्धुओंपर आक्षेप करना उन्हें शोभा नहीं देता । यह सत्य है कि अली-बन्धु धार्मिक या राष्ट्रीय अधिकारोंकी प्रतिष्ठाके लिए हिंसाके प्रयोगमें विश्वास करते हैं, लेकिन मैं जानता हूँ कि कांग्रेस कार्यक्रमको उन्होंने पूरी तरह स्वीकार

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