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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी नहीं हो पाये हैं, और न उन्हें अपने-अपने क्षेत्रमें तैयार किये जानेवाले खद्दरके उपयोगका ही अभ्यास हो पाया है। विभिन्न जातियों तथा धर्मोके लोगोंके बीच एकता-जैसी और शर्तोंका उल्लेख मैं छोड़ देता हूँ। इन परिस्थितियों में मेरी राय में हम सबका यह कर्त्तव्य है कि जबतक जनसाधारणमें आवश्यक अनुशासन और आत्म-शुद्धि न आ जाये तबतक हम आम सविनय अवज्ञा प्रारम्भ न करें। अगर हम ऐसा नहीं करते तो अवज्ञा सविनय न रहकर, अपराधमूलक हो जायेगी, और इस तरह हम एक सभ्य और अनुशासित राष्ट्रकी तरह अपने मामलोंका संचालन करनेके लायक नहीं रह जायेंगे। इसलिए मेरा प्रबल अनुरोध है कि आप सभी जिलोंकी रैयतको कमसे-कम पहली किस्त चुका देनेकी सलाह दें और कार्यकर्त्ताओंको अपना सारा समय आवश्यक योग्यता प्राप्त करनेमें लगाने को कहें। मैं जानता हूँ कि मेरे इस विचारसे बहुतसे उत्साही लोगोंको निराशा होगी, लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि हमारी सफलता इस निराशामें ही निहित है, क्योंकि अगर लोग सचमुच स्वराज्यके लिए उत्सुक हैं और सविनय अवज्ञा करना चाहते हैं तो उस तीव्र इच्छाके वशीभूत होकर वे अपनी मनोवृत्ति में आवश्यक परिवर्तन भी जरूर लायेंगे। आन्ध्रकी स्त्रियोंमें जो कलापूर्ण ढंगसे सूत कातनेकी प्रवृत्ति है और वहाँके बुनकरोंमें कलात्मक बुनाई करनेकी जो प्रवृत्ति है उसके कारण अलग-अलग क्षेत्रोंमें खद्दरका उत्पादन बहुत आसान हो जाना चाहिए। लेकिन इन योग्यताओंको प्राप्त करना कठिन हो या आसान यदि हम उससे बचने की कोशिश करेंगे तो हमारा प्रिय उद्देश्य ही खतरेमें पड़ जायेगा।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २१-१-१९२२

८७. भेंट: ‘बॉम्बे क्रॉनिकलके’ प्रतिनिधि से

१७ जनवरी, १९२२

कल हमारे प्रतिनिधिने महात्मा गांधीसे मुलाकात की। मुलाकात में उसने अभी हाल में बम्बई में हुई गोलमेज परिषद् के सम्बन्धमें ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित सर शंकरन् नायरके पत्रके[१] सम्बन्धमें सवाल पूछे। स्मरण होगा कि सर शंकरन कुछ मतभेद हो जानेके कारण समिति छोड़कर चले गये थे।

महात्माजीने कहा:

‘टाइम्स ऑफ इंडिया’को लिखा गया सर शंकरन् नायरका पत्र पढ़कर मुझे बहुत दुःख हुआ। पत्रसे स्पष्ट है कि उन्होंने इसे बहुत जल्दीमें लिखा था और उस समय वे क्रोधमें भी थे। इसलिए उस पत्रमें जो गलतबयानियाँ हैं, उनका मैं सिलसिलेवार जवाब न देकर कुछ मोटे तथ्य ही कहूँगा।

  1. देखिए परिशिष्ट १।