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पत्र: कोण्डा वेंकटप्पैयाको
या उनपर प्रतिबन्ध लगाया गया है, वापस ले ली जायें, और ऐसी सूचनाओंकी रू से जिन कैदियोंपर मुकदमे चल रहे हों या जो सजा काट रहे हों उन्हें, प्रसंगानुसार, रिहा कर दिया जाये या छोड़ दिया जाये।
(ख) अलीबन्धुओं तथा उनके साथियोंके साथ ही अन्य फतवा कैदियोंको भी छोड़ दिया जाये।
(ग) जिन अन्य कैदियोंको अहिंसक तथा अन्य निर्दोष गति-विधियोंके लिए सजा दी गई है या जिनपर इसके लिए मुकदमे चल रहे हैं, उनके मामलोंपर ‘मालवीय परिषद्के’ तीसरे प्रस्तावमें निर्धारित तरीकेसे विचार किया जाये और उन्हें रिहा किया जाये; और
(घ) सम्बन्धित सरकारों द्वारा उपर्युक्त काम करनेके साथ-साथ तथा यदि गोलमेज परिषद् बुलायी जाये तो उसकी कार्यवाही चलनेतक कोई हड़ताल न हो, धरना न दिया जाये और सविनय अवज्ञा न प्रारम्भ की जाये।

कांग्रेसकी माँगोंके बारेमें किसी तरहकी गलतफहमी न हो इसलिए कार्य-समिति ‘मालवीय परिषद्’ द्वारा नियुक्त समितिका ध्यान खिलाफत, पंजाब तथा स्वराज्य-सम्बन्धी दावे कांग्रेस के मंचोंसे सार्वजनिक तौरसे समय-समयपर जिस रूप में पेश किये गये हैं उसी रूपमें उन तीनों दावोंकी ओर आकृष्ट करती है, और कहना चाहती है कि इसलिए कांग्रेस और खिलाफत के प्रतिनिधि इन तीनों दावोंके पूरे निपटारेकी माँग करनेको कर्त्तव्यबद्ध होंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १९-१-१९२२

८६. पत्र: कोण्डा वेंकटप्पैयाको[१]

बम्बई
१७ जनवरी, १९२२

प्रिय वेंकटप्पैया[२],

वहाँ[३] जो “कर देना बन्द करो” अभियान चल रहा है, उसके बारेमें मैंने बहुत सोचा है। अगर गोलमेज परिषद् हुई तो उस स्थिति में यह सम्भावना तो है। ही कि आम सविनय अवज्ञा आन्दोलन स्थगित कर दिया जाये। लेकिन इसके अलावा मेरे खयालसे, कर-बन्दी अभियानके लिए भी आप लोग अभी तैयार नहीं हैं। मुझे ऐसी आशंका है कि प्रयोगाधीन क्षेत्रके पचास प्रतिशत लोग अब भी अस्पृश्यतासे मुक्त नहीं हो पाये हैं। वे पचास प्रतिशत लोग अहिंसाके रास्तोंपर चलनेके आदी

  1. यह पत्र हिन्दूमें जन्मभूमिसे उद्धृत किया गया था।
  2. आन्ध्र प्रादेशिक कांग्रेस कमेटीके अध्यक्ष।
  3. आन्ध्रमें।