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नेताओंको छोड़कर उपहासका पात्र बनने और सिखोंके बलको दूना होने देकर सन्तोष माननेमें।।

एक अंग्रेज महिलाको स्वीकारोक्ति

इसमें सन्देह नहीं कि असहयोगका मधुर प्रभाव अंग्रेजोंपर भी बढ़ता जाता है। मेरे पास इस आशयके तीन पत्र हैं; मैंने इनमें से दो को प्रकाशित किये जाने योग्य न होने के कारण प्रकाशित नहीं किया है। लेकिन एक अंग्रेज महिलाने जो पत्र लिखा है वह निस्सन्देह प्रकाशित करने योग्य है। उनके पत्रका सारांश निम्नलिखित है:[१]

इस पत्र की प्रत्येक पंक्ति में हृदयकी शुद्धताकी झलक है। यह महिला मेरे समस्त कार्यों में ईसा मसीहका हाथ देखती है। मेरी कामना है कि भाबुक हिन्दुओंको मेरे कार्यों में राम-कृष्णका तथा मुसलमानोंको खुदा और पैगम्बरका हाथ दिखाई दे। जहाँ तक मेरा सवाल है मेरे कार्यों में सत्यका हाथ होना ही काफी है। सत्यमें ईश्वर अपने सहस्र नामों सहित समाया है और मुझे विश्वास है कि यदि हम अन्ततक सत्य तथा शान्तिका पालन करते रहेंगे एवं असत्य और अशान्तिका त्याग करते जायेंगे तो हम दिन-प्रतिदिन प्रगति करते जायेंगे तथा जो अंग्रेज हमें आज शत्रु-समान दीख पड़ते हैं वे ही अन्ततः हमारे मित्र और हमारे राष्ट्रवादके समर्थक बनेंगे ।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १६-१-१९२२

८४. पत्र: ‘बॉम्बे क्रॉनिकलको’

[१६ जनवरी, १९२२]

महोदय,

‘क्रॉनिकलको’ के आजके अंकमें[२] एक चीज छपी है, जिसे मेरे साथ आपके संवाददाताकी भेंट-वार्त्ता बताया गया है। मैंने आपके संवाददाता अथवा अन्य किसीको ऐसी कोई भेंट नहीं दी। जिस बातचीतकी रिपोर्ट छापी गई है, वह प्रकाशनार्थ नहीं थी। जिस हास्य विनोद और भाव-भंगिमाओंके साथ यह बातचीत हुई, यदि उसका सजीव विवरण छापा जाये तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी। लेकिन जिस रूपमें यह विवरण छपा है वह तो एक अनौपचारिक रूपसे हुई वार्ताका मजाक-जैसा लगता है। इस विवरणमें आवश्यक परिवर्तन किये बिना मेरे लिए पाठकके मनपर पड़ने वाली छापको सुधार सकना कठिन है। अतः मैं पाठकोंसे कहूँगा कि वे इस पूरी “भेंट-वार्त्ता” को अपने दिमाग से निकाल दें। मुझे आशा है कि सर शंकरन् नायर वह

  1. इसके बाद पत्रका गुजराती अनुवाद दिया गया है। मूल पत्रके लिए देखिए यंग इंडिया, १२-१-१९२२।
  2. १६ जनवरी, १९२२ के अंकमें।