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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

इस बातके साक्षी आज सैकड़ों कैदी हैं। स्वेच्छा से स्वीकार की गई जेलोंने हिन्दुस्तानको स्वतन्त्रताकी देवीकी झांकी करवा दी है। शौकत अली, मोतीलाल नेहरू, लालाजी, चित्तरंजन दास और अबुल कलाम आजाद जबसे जेलोंमें पहुँचे हैं तभी से हिन्दुस्तानकी बेडियाँ टूट गईं। अब भले ही कोई भी समझौता होता रहे। समझौतेमें सुख है अथवा खूब संघर्ष करनेमें, या दुःख भोगनेमें सुख है, कौन जानता है? समझौता तो एक प्रमाणपत्र है। बुद्ध विद्यार्थीको प्रमाणपत्रकी जरूरत होती है। जिसे अपने ज्ञानपर भरोसा है वह क्या उसे प्रमाणपत्रसे सिद्ध करनेकी कोशिश करेगा? स्वस्थ व्यक्ति के लिए डाक्टरका प्रमाणपत्र किस कामका? कांग्रेस अधिवेशनमें शामिल होनेवाले हजारों लोगोंने स्वतन्त्रताकी लहरका अनुभव किया है। यदि उन्होंने ऐसा अनुभव नहीं किया तो पियर्सनका पत्र व्यर्थ है।

लेकिन जैसे पॉल रिचर्डने नये युगके आरम्भका अनुभव किया है उसी तरह हजारों स्त्री-पुरुषोंने भी अनुभव किया है। यदि हमें इस सम्बन्धमें विश्वास हो तो हम समझौते के बारेमें निश्चिन्त रहें।

एक ऋषिका आशीर्वाद

महाकविके पिता महर्षिके नामसे प्रसिद्ध थे और मैंने देखा है कि उनके बड़े भाई भी जिनकी आयु ७० वर्षकी है महर्षिकी पदवी पानेके योग्य हैं। उनमें आज भी अद्भुत शक्ति है। उन्हें हिन्दुस्तानकी उन्नतिमें जगत्की उन्नतिका आभास होता है और वे असहयोगको धर्मयुद्धके रूपमें देखते हैं। मुझे जब-जब उनका पत्र मिलता है मैं तब-तब उसका स्वागत आशीर्वादके रूपमें करता हूँ। मैं उनमें से कुछ पत्रोंको, जो पाठकोंके पढ़ने योग्य होते हैं उनके सामने प्रस्तुत करता हूँ। कांग्रेस अधिवेशनके समय उन्होंने तार भेजा था। उससे सन्तुष्ट न होकर अब उन्होंने एक पत्र लिखा है। उसका सारांश निम्नलिखित है:[१]

सिखोंकी बहादुरी

सिखोंकी बहादुरीका पारा दिन-प्रतिदिन चढ़ता ही जाता है। जिस तरह उनकी वीरतामें दिन दूनी और रात चौगुनी वृद्धि हो रही है उसी तरह उनकी सहनशक्ति अर्थात् शान्ति बढ़ती जाती है। सरकारने अमृतसरके स्वर्ण-मन्दिरकी जो चाबी छीन ली थी उसे अब वह गुरुद्वारा प्रबन्धक समितिको वापस देनेके लिए तैयार हो गई है। लेकिन जबतक सरकार गिरफ्तार किये गये प्रत्येक नेताको छोड़नेके लिए तैयार नहीं होती तबतक गुरुद्वारा प्रबन्धक समितिने उस चाबीको वापस लेनेसे इनकार कर दिया है। फलतः सरकारकी गति साँप-छछूँदर-जैसी हो गई है। यदि वह सिख नेताओंको छोड़ देती है तो उसकी हँसी होती है तथा सिखोंकी शक्ति दूनी होती है और यदि नहीं छोड़ती तो सिखोंकी शक्ति दस गुनी बढ़ती है। अब सरकारको यह सोचना है कि सिखोंके बलको दस गुना बढ़ने देने में समझदारी है अथवा सिख

  1. इसके बाद पत्रका गुजराती अनुवाद दिया गया है। मूल पत्रके लिए देखिए यंग इंडिया, १२-१-१९२२।