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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

पूनाकी बहादुरी

मैं पूनापर मोहित हूँ, ‘नवजीवन’ के पाठक कदाचित् यह बात नहीं जानते। १९१५ में[१] जब मैं इंग्लैंडसे लौटा था तभी मैंने ये उद्गार प्रगट किये थे। पूनाका बलिदान ज्ञानमय है। पूनामें जितनी विद्वत्ता है उतनी किसी अन्य शहरमें नहीं है। पूनामें जितनी सादगी और स्वभावकी नरमी है उतनी अन्यत्र नहीं। पूनासे संस्कृतके अध्ययनका प्रसार हुआ है। पूनामें लोकमान्य और गोखले रहे। पूनाने कष्ट सहन करनेमें कोई कसर नहीं उठा रखी है। पूना तो बहुत-कुछ कर सकता है। अब भी मेरी यह मान्यता है कि पूना बलिदानमें कदाचित् सबसे आगे जायेगा। श्री नरसोपन्त चिन्तामण केलकर अपना कार्य दक्षतापूर्वक चला रहे हैं। सरकार भी चालाकीसे उन्हें आजमा रही है। शराबकी दूकानोंपर जो धरना दिया जाता है वह अत्यन्त सुन्दर रूप धारण कर रहा है। वहाँ अच्छे-अच्छे असहयोगी धरना देनेके लिए निकल पड़े हैं। उसमें श्री केलकरने अपने समस्त परिवारको होम दिया है। सरकार केवल जुर्माना करती है। जब सरकार किसीको पकड़ती ही नहीं, तब पूनाके असहयोगी क्या करें? स्त्रियाँ भी अब बाहर निकल आई हैं। यह सच है कि इससे मुझे ईर्ष्या होती है। मुझे उम्मीद थी कि गुजरातकी स्त्रियाँ ही वस्तुतः पहल करेंगी। बंगालने कार्य शुरू किया; लेकिन सरकारने चुनौतीको स्वीकार ही नहीं किया। पूनाकी स्त्रियोंने तो ऐसा कार्य आरम्भ किया जान पड़ता है जिससे यह स्थिति उत्पन्न हो गई है कि या तो सरकारको उन्हें गिरफ्तार करना पड़ेगा या उसे अपने कानूनको वापस लेना होगा। श्रीमती केलकर, श्रीमती गोखले, श्रीयुत गोखलेकी बहन श्रीमती इन्दुमती नायक, श्रीमती यशोदाबाई फड़के और अन्य चार बहनें शराबकी दुकानोंपर धरना देनेके लिए निकली थीं। उन्हें थानेपर ले जाया गया और वहाँ ले जाकर छोड़ दिया गया। इस धरनेमें कभी जोर-जबरदस्तीकी गन्ध भी नहीं हो सकती और इसमें सन्देह नहीं कि इससे शराब की दुकानें अवश्यमेव बन्द हो जायेंगी। पूनाकी स्त्रियाँ चतुर और दृढ़ संकल्प हैं। उनके द्वारा आरम्भ किये गये युद्धके सम्बन्धमें मुझे तनिक भी शंका नहीं है। यह युद्ध अब अच्छी तरहसे जमे बिना नहीं रह सकता और इसमें सरकारको मुँहकी खानी ही पड़ेगी। महाराष्ट्र के योद्धाओंने व्यावहारिक नीतिके रूपमें शान्तिके मार्गको अंगीकार किया है, इसलिए इसमें सन्देह नहीं कि वे शान्तिका पालन करते हुए अपना कार्य सम्पन्न करेंगे। और जहाँ शान्ति, बलिदान और ज्ञानकी त्रिवेणी वहती हो वहाँ विजयके अतिरिक्त कोई और परिणाम हो ही नहीं सकता।

अब गुजरातकी स्त्रियोंको पूनाकी स्त्रियोंसे होड़ करनी होगी। गुजरातके पुरुष पूनाके बलिदानकी बराबरी कब करेंगे? अगर वे उसके पीछे-पीछे भी चलें तो यह भी सन्तोषकी बात होगी। गुजरातने आजतक नम्रता, सादगी, शौर्य, धैर्य और देश-सेवाका मूल्य नहीं जाना है। अब गुजरातने उत्साहका परिचय दिया है; लेकिन अभी उसकी परीक्षा कष्ट-सहनकी कसौटीपर की जानी है। ईश्वर गुजरातकी लाज रखे।

 
  1. देखिए खण्ड १३, पृष्ठ २३-२४।