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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हिन्दुओंकी संख्या चाहे ज्यादा हो फिर भी वे उनका विश्वास रखेंगे और हिन्दुओंके विरुद्ध बाहरके मुसलमानोंकी सहायता लेनेमें लज्जित होंगे। किन्तु यदि दोनों पक्ष इस तरहका सभ्यतापूर्णं बरताव न भी करें और एक ही पक्ष सभ्यतापूर्ण व्यवहार करे तो भी हिन्दुओं और मुसलमानोंकी मित्रताको कभी आँच न आयेगी। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि एक पक्ष भी अपने धर्मपर दृढ़ रहेगा तो उनमें वैर कभी नहीं होगा। अपने धर्मपर दृढ़ रहना तो यही माना जायेगा कि हम अपनी सुरक्षा केवल ईश्वरपर ही छोड़ दें और फिर निश्चिन्त होकर केवल नीतिके मार्गपर ही चलें। यदि हिन्दू मोपलोंके उपद्रवपर इस नियमको लागू करें तो हम मोपलोंका दोष देखकर भी मुसलमानोंको दोष न दें। जिन हिन्दुओंको उपद्रवमें नुकसान पहुँचा हो हम उनको सहायता दें और उनको अपने पैरोंपर खड़ा करनेकी व्यवस्था करें।

स्वराज्यका अर्थ यह है कि अकेला आदमी भी आवश्यकता होनेपर अनेकों से लड़े और उनसे डरे नहीं। हिन्दू मुसलमानोंकी सद्भावनापर ही निर्भर न रहें। मुसलमान हिन्दुओंके ओछेपनसे भयभीत न हों। दोनों अपनी-अपनी शक्तिपर भरोसा करें और एक-दूसरेका पोषण करें। मोपलोंके अत्याचारसे भयभीत होकर कोई भी हिन्दू भागा क्यों? अंग्रेजोंकी सेनासे डरकर किसी भी हिन्दूने मोपलोंके विरुद्ध खबर क्यों दी? मोपले कहाँ छिपे हैं, यह बतानेके लिए हिन्दू बँधे नहीं थे। किसी भी हिन्दूने मोपलोंके डरसे इस्लाम धर्मकी प्रक्रियाएँ करनेका ढोंग क्यों किया? हम आज जिस नियमको अंग्रेज सरकारके विरुद्ध लागू कर रहे हैं हमें उसी मर जानेके नियमको अत्याचारके सभी अवसरोंपर लागू करना चाहिए। यदि हम अत्याचारीके हाथों मारे जानेका भय होनेपर भी उसका कहना न करें तो हम सिंहकी तरह बली हुए। जो अत्याचारीको मारकर हटायेगा उसको स्वयं भी किसी दिन अत्याचार करनेका लालच होगा, क्योंकि उस अवस्थामें वह ईश्वरपर निर्भर रहनेकी अपेक्षा अपने बाहुबलपर निर्भर रहने लगेगा। जो अपने-आपको ईश्वर मानता है उसका तो नाश ही हो सकता है। वह कभी स्वतन्त्र नहीं हो सकता, क्योंकि उसने तो अनधिकारपूर्वक ईश्वरका स्थान लेना चाहा है और वह स्थानभ्रष्ट हुआ है। ऐसे मनुष्यको तो पहले अपनी स्थिति पहचाननी है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १६-१-१९२२