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८२. मित्रताका नियम

मोपलोंके उपद्रवोंके सम्बन्धमें मौलाना हसरत मोहानीके भाषणसे बहुत-से हिन्दुओंको क्षोभ हुआ है।[१] मद्राससे कांग्रेसके कार्यकर्त्ताओंने मौलाना हसरत मोहानीके विरुद्ध पत्र[२] भी लिखे हैं। वांछनीय यह है कि पाठक इन दोनोंमें से किसी भी पक्षकी बातका खयाल न करें। मौलानाकी दृष्टि दूसरी है, मलाबारी हिन्दुओंकी दूसरी है। मौलाना-ने यह मान लिया कि वह एक खास तरहकी स्थिति थी और ऐसा मानकर उसपर लड़ाईका नियम लागू किया है। मलाबारी हिन्दुओंने स्थितिकी अपनी जानकारी के आधारपर मौलानाके कथनपर आपत्ति की है। मौलानाने यह माना है कि मोपलाओंने वहाँ जिहाद किया है। जिहादका नियम यह है कि जो दुश्मनको मदद दे वह भी दुश्मन होता है। हिन्दुओंने सरकारी अधिकारियोंको खबर दी इसलिए वे दुश्मन हुए और इस स्थितिमें हिन्दू तो क्या कोई मुसलमान भी हो तो वे उससे भी लड़ेंगे। मलाबारी हिन्दू कहते हैं, “मोपलोंके उपद्रवको लड़ाईका नाम नहीं दिया जा सकता। यदि वह लड़ाई हो तो भी हिन्दू दुश्मन नहीं माने जा सकते क्योंकि वे तो स्वयं गुलाम हैं; हिन्दुओंने अपनी जान बचानेकी खातिर मोपलोंके छिपनेकी जगह बता दी हो तो भी वे दुश्मन नहीं माने जा सकते; मोपला उन्हें दुश्मन मानें तो भी उनके बाल-बच्चोंको और उनके मन्दिरोंको उन्हें सुरक्षित रहने देना था; यदि एक हिन्दू कोई काम करे तो उससे सब हिन्दू दुश्मन नहीं माने जा सकते; मोपलोंने जो कुछ किया उससे उन्होंने पड़ोसी के धर्मकी रक्षा कदापि नहीं की और लड़ाईके नियमका भी पालन नहीं किया। मोपलोंका समर्थन करना ठीक नहीं है और उससे हिन्दुओंके मनमें सन्देह पैदा हो सकता है।” मैं इन तर्कोंको उचित मानता हूँ, किन्तु मैं मौलानाको दोष नहीं देता। मौलाना अंग्रेजी सत्ताको दुश्मन जैसा ही मानते हैं। उनके विरुद्ध कोई कुछ भी करे वे उसका बचाव करते हैं। वे यह मानते हैं कि मोपलोंके सम्बन्ध में जो कुछ कहा जाता है उसमें बहुत-कुछ झूठ होता है इसलिए वे मोपलोंका दोष माननेके लिए तैयार नहीं हैं। मैं यह मानता हूँ कि यह सब दृष्टिकी संकीर्णता है, किन्तु इसमें हिन्दुओंको दुःख माननेका कारण नहीं है। मौलाना अपने मनमें जैसा समझते हैं वैसा कहते हैं। वे सच्चे आदमी हैं और साहसी हैं। सभी लोग जानते हैं कि उनके मन में हिन्दुओंके प्रति द्वेष नहीं है। वे जो-कुछ कहते हैं वह हिन्दुओंके प्रति द्वेषसे प्रेरित होकर नहीं, बल्कि अंग्रेजी राज्यके प्रति रोषके कारण कहते हैं।

  1. मोपलोंने अगस्त १९२१ में अपने उपद्रवोंमें हिन्दुओंपर बहुत अत्याचार किये थे और मौलाना हसरत मोहानीने मुस्लिम लीगके अहमदाबादमें हुए अधिवेशनमें अध्यक्ष-पदसे भाषण देते हुए उनके आचरणको उचित प्रतिशोध कहकर उसका समर्थन किया था।
  2. इनमें से दो पत्रोंके उद्धरणोंके लिए देखिए “हिन्दू और मोपला”, २६-१-१९२२ शीर्षककी पाद-टिप्पणी १।