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भाषण: नेताओंकी परिषद् में

नरमदलीय भाइयोंकी चिकनी-चुपड़ी बातोंमें आता जा रहा हूँ। अगर वे मुझपर ऐसा आरोप लगाते हैं तो मैं कहूँगा कि मैं सचमुच दोषी हूँ। (हँसी) सजायाफ्ता राजनीतिक कैदियों या जिन राजनीतिक कैदियोंपर सामान्य कानूनके अन्तर्गत मुकदमे चल रहे हैं, उनके सम्बन्धमें मैंने आपसे कल ही कहा कि इस सम्मेलनकी सिफारिशोंमें ऐसे सभी कैदी आयेंगे या नहीं, इसका निर्णय सम्मेलन द्वारा नियुक्त की जानेवाली कमेटी ही करेगी, लेकिन तथ्योंको ध्यान में रखते हुए और मित्रोंके दबावके कारण मुझे तो झुकना ही पड़ा। इसलिए मैंने कहा कि “अगर आप एक व्यक्तिको अपनेमें से नामजद करनेको तैयार हों और दूसरेको सरकारी अधिकारियोंमें से, और दोनोंको एक पंच चुननेका अधिकार दें तो मैं इस प्रस्तावको स्वीकार कर लूँगा।” मुझे आशा है कि यह प्रस्ताव स्वीकार कर लेनेके कारण मेरे असह्योगी मित्र मुझसे नाराज नहीं होंगे। जहाँतक देशके आम कानूनका दुरुपयोग करके या उसे गलत ढंगसे लागू करके कैद किये गये लोगोंका सम्बन्ध है, यह छोटी-सी कमेटी ही उनके मामलोंपर विचार करके उनकी रिहाईकी सिफारिश करेगी। मैं बेहिचक ऐसा मानता हूँ कि उस कमेटीके हाथों में हमारे इन कैद किये गये देशभाइयोंका हित बिलकुल सुरक्षित रहेगा। आप देखेंगे कि कलके प्रस्तावमें एक शर्त यह थी कि सभी सरकार विरोधी गतिविधियाँ आजसे बन्द हो जायेंगी। इस सम्बन्ध में मैंने कमेटी के सामने एक वाक्य रखा, लेकिन देखा इससे तो मैं मुसीबतमें फँस गया हूँ। (हँसी) आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पण्डित कुँजरूकी तीक्ष्ण बुद्धिने तत्काल इसमें एक नुक्स निकाल दिया, और उस नुक्सकी जानकारी मुझे सही रास्तेपर ले आई। मैंने कहा, “नहीं, मैं क्षण-भरको भी आम ढंगका कोई वाक्य यहाँ प्रयुक्त नहीं करना चाहता। हमारा संघर्ष अत्यन्त शुद्ध है। हमें देशसे या वाइसराय महोदयसे कुछ भी छिपाने की जरूरत नहीं है। जहाँतक मेरा सम्बन्ध है, उन सबको यह जान लेना चाहिए कि हमारे मनमें ठीक-ठीक कौनसी बात चल रही है। तो सवाल यह है कि उक्त गोलमेज सम्मेलन होनेतक सभी गति-विधियाँ बन्द रखी जायें। मैं तो सिर्फ कोई निश्चित चीज ही स्वीकार कर सकता हूँ, और इसलिए मैंने समझौता करनेके खयालसे इरोड (मद्रास) की बहुतसी स्त्रियों तथा पूनाके श्री लैवेटके हितोंका बलिदान कर दिया है। मैंने कह दिया है कि जबतक सम्मेलन चलेगा, हम शराबकी दुकानोंपर धरना देना बन्द रखेंगे। ऐसा मैंने इसलिए किया है ताकि दूसरा उद्देश्य सिद्ध कर सकूँ, अर्थात् यह कि वाइसराय महोदय अथवा कोई भी हमपर वादाखिलाफीका आरोप न लगा सके। सरकारको जो शर्तें पूरी करनी हैं, उन्हें अगर उसने पूरा कर दिया तो हम सम्मेलनकी अवधितक हड़ताल करना बन्द रखेंगे, धरना देना बन्द रखेंगे और तबतक सविनय अवज्ञा प्रारम्भ नहीं करेंगे। बेशक, यह कहते हुए मुझे दुःख होता है कि हमें शराब की दुकानोंपर कानूनी तौरपर तथा शान्तिपूर्ण और सदाशयतापूर्ण ढंगसे धरना देना भी बन्द करना पड़ेगा, लेकिन मुझे आशा है कि मेरे असहयोगी भाई इस बातको लेकर नाराज नहीं होंगे। जो मुख्य बात मैं कहना चाहता हूँ, वह यह है कि असहयोग-सम्बन्धी और कोई गति-विधि बन्द नहीं की जायेगी। श्री कुँजरूने मुझसे पूछा कि अगर इन कैदियोंको छोड़ दिया जाता है और

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