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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

दूसरा प्रस्ताव भी ज्योंका-त्यों रहता है। उसके सम्बन्ध में मैं सम्मेलनसे वे बातें कहूँगा जो मैंने कमेटी के सामने कही थीं; अर्थात् यह कि अगर सम्मेलन यह प्रस्ताव आधिकारिक रूपसे भेजता है तो वह कार्य-समितिके[१] सामने रखा जायेगा और कार्य-समिति उसपर विचार करेगी। और मैंने इस सम्मेलनकी कमेटीको जो आश्वासन दिया है उसे फिर दुहराता हूँ कि अहमदाबाद कांग्रेसके प्रस्तावमें जो आम सविनय अवज्ञा प्रारम्भ करनेका निश्चय किया गया है उसे मैं कार्य-समितिको तबतक रोके रहनेकी सलाह दूँगा जबतक इस सम्मेलन द्वारा नियुक्त की जानेवाली कमेटी इस आशासे सरकारसे बातचीत करती रहेगी कि वह एक गोलमेज सम्मेलनकी बात मंजूर कर लेगी। लेकिन देशको इस महीनेकी ३१ तारीख के बाद आम सविनय अवज्ञा रोके रखने की सलाह देना मेरे लिए सम्भव नहीं होगा। मैं आपको यह भी बता दूँ कि यह समय-सीमा बढ़ाने के लिए मुझपर काफी जोर डाला गया, किन्तु दुःखके साथ बताना पड़ता है कि मैं उसके लिए राजी नहीं हो सका। क्यों नहीं राजी हो सका, इसका कारण मैं बहुत संक्षेपमें बता देना चाहता हूँ। मेरे लिए १५ दिनका समय भी बहुत महत्त्व रखता है। दूसरा कारण तो मैंने आपके सामने कल ही पेश कर दिया था, जिसका सम्बन्ध आज देश में जो-कुछ हो रहा है, उससे है। जहाँतक देशमें चल रही दमनकी कार्रवाइयोंका सम्बन्ध है, असहयोगियोंने जो भी गलतियाँ या अपराध किये हों, उन सबके बावजूद मेरा विचार है कि इन कार्रवाइयोंका कतई कोई औचित्य सिद्ध नहीं किया जा सकता और असहयोगी लोग इनका एकमात्र उत्तर यहीं दे सकते हैं कि वे आम सविनय अवज्ञा प्रारम्भ कर दें। लेकिन मेरे जो देशभाई असहयोगी नहीं हैं, उनका समर्थन प्राप्त करने के लिए, उनकी सहानुभूति पाने के लिए मैंने इच्छा न होते हुए भी कहा है कि हम पन्द्रह दिनतक आम सविनय अवज्ञा रोके रहेंगे। (हर्षध्वनि) मुझे आशा है, मैं कार्य-समितिको इस बातपर सहमत कर लूँगा। पिछली रात हम असहयोगियोंने इस विषयपर आपस में अनौपचारिक तौरपर विचार-विमर्श किया, और उन्होंने मुझे यह कहनेका अधिकार दे दिया कि इस सम्मेलन द्वारा नियुक्त कमेटी वाइसरायसे बातचीत कर सके, इसलिए उन्होंने पन्द्रह दिनतक प्रतीक्षा करनेका निश्चय किया है। इस तरह वाइसराय महोदयकी हमारे प्रति जो गलत धारणा है वह दूर होगी और यह साफ हो जायेगा कि हम लोग दुराग्रही नहीं हैं। अगर गोलमेज सम्मेलन के सफल होने की कोई सम्भावना हो तो हम ऐसे सम्मेलनके आयोजनके मार्गमें बाधक नहीं होना चाहते। और जो बात सबसे महत्त्वपूर्ण है वह यह है कि हम अपने उन देशभाइयोंके साथ अपना सम्बन्ध ठीक करना चाहते हैं जिनका दृष्टिकोण हमसे नहीं मिलता। फतवा कैदियोंको रिहा कीजिए, उन राजनैतिक कैदियोंको रिहा कीजिए जो या तो सजा भोग रहे हैं या जिनपर सामान्य कानून अथवा दण्डविधि संशोधन अधिनियम और राजद्रोहात्मक सभा अधिनियम के अन्तर्गत मुकदमे चल रहे हैं। यही माँग हमने कल पेश की थी और यही वे शते हैं जिन्हें मंजूर करनेका मैं आग्रह कर रहा हूँ। मेरे असहयोगी मित्र इस बातसे मुझपर शायद नाराज होंगे कि मैं अपने

  1. कांग्रेसकी कार्य समितिके सामने।