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भाषण: नेताओंकी परिषद्

लेकिन मैं आपको नहीं छोड़ सकता――वैसे ही जैसे मालवीयजीको नहीं छोड़ सकता, भले ही फिलहाल वे मेरे पक्षमें नहीं हैं। मैं आपको एक सत्यनिष्ठ व्यक्ति मानता हूँ। आपने मेरे मनपर यह छाप छोड़ी है कि आप अत्यन्त सुसंस्कृत व्यक्ति हैं और जान-बूझकर कोई गलत काम कर ही नहीं सकते।

[अंग्रेजीसे]
स्टोरी ऑफ माई लाइफ
 

८०. भाषण: नेताओंकी परिषद् में[१]

१५ जनवरी, १९२२

अध्यक्ष महोदय और भाइयो,

श्री एन० वी० गोखलेने जो तीन-चार सवाल पूछे हैं, वे उचित ही हैं। उन्होंने सवाल पूछे हैं और मैं समझता हूँ, इस समितिको ये प्रस्ताव तैयार करनेमें मैंने जो सहायता दी हैं, उसका पूरा स्पष्टीकरण दे दूँ। आप देखेंगे कि प्रस्ताव जिस रूपमें आपको कल पढ़कर सुनाये गये थे, उनमें महत्त्वपूर्ण परिवर्तन कम ही किये गये हैं। सम्मेलनको ध्यान रहे कि मैं सम्मेलनके प्रस्तावोंमें शरीक होना नहीं चाहता, और जहाँतक मेरा सम्बन्ध है, मैं तो कहूँगा कि उनमें अन्य असहयोगी लोग भी शामिल नहीं होंगे। (हर्षध्वनि) वे बहसमें भी भाग नहीं लेंगे। तो मेरी नम्र सम्मतिमें इन प्रस्तावों के आशय-अभिप्रायपर विचार करके अपनी इच्छानुसार इन्हें स्वीकार अथवा अस्वीकार करनेका विशेष अधिकार या कर्त्तव्य उन लोगोंका है जो असहयोगी नहीं हैं। मैंने कल बताया था कि असहयोगियोंका काम क्या है, और मैं कलकी एक-एक बातपर आज भी कायम हूँ। मैंने कहा था कि असहयोगियोंका काम सलाहकारका काम है; लेकिन वे इन प्रस्तावोंमें शरीक नहीं हैं। इसका मतलब यह नहीं कि इन प्रस्तावोंपर वे कोई मत ही नहीं रखते। बेशक, इनपर उनका एक अपना मत है। कुछ ऐसी चीजें हैं जिन्हें चन्द विशेष परिस्थितियोंमें करना असहयोगियोंके लिए जरूरी हो जाता है। व्यक्तिशः मैं आपको यह बता दूँ कि असहयोगियोंका रवैया इस बातपर निर्भर करेगा कि ये प्रस्ताव उनपर किस ढंगकी जिम्मेदारी डालते हैं। पहले प्रस्तावके सम्बन्ध में तो मैंने जो-कुछ कल कहा, उससे अधिक मुझे कुछ भी नहीं कहना है। मेरा कहना है कि वह ज्योंका-त्यों है।

  1. यह परिषद् बम्बई में हुई थी। १७-१-१९२२ के हिन्दू के अनुसार इस परिषद्ने १४ जनवरोको जो समिति नियुक्त की थी, उसकी बैठक १५ जनवरीको परिषद्की दुबारा बैठक होनेसे पहले ही हुई थी और उसमें एक सलाहकार के तौरपर अनौपचारिक रूपसे गांधीजी भी शामिल हुए थे। परिषद्की कार्रवाई ६ बजे शामको शुरू हुई, जिसमें गांधीजीने भाषण दिया था। १८-१-१९२२ के हिन्दूमें उसे “महात्मा गांधी भाषणका पूरा पाठ” शीर्षकसे छापा गया था।