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अपने-आपको अशुद्ध हुआ नहीं मानते, जो पहनने और ओढ़ने में खादीके वस्त्रोंका ही प्रयोग करते हैं और जिनमें मरने और अपनी सम्पत्ति जब्त करानेकी हिम्मत हैं ऐसे लोग मेरी सलाह लिये बिना ही भले लगानबन्दी कर दें।

किन्तु यह तो व्यक्तिगत बात हुई। जिसको जरा भी समझाने की जरूरत होती हो ऐसे सब लोगों को मैं लगानबन्दी करने की सलाह नहीं दे सकता। इसका मुख्य कारण तो यह है कि मुझे अभी यह विश्वास नहीं हुआ है कि गुजरातके सभी ताल्लुकोंके लोग लगानबन्दी करके अपनी सम्पत्ति नीलाम होने देने और फिर भी रोष न करने के लिए तैयार हो गये हैं। इसलिए सामान्य लोगोंके लिए बुद्धिमानीका मार्ग यही है कि उनको लगान दे देनेकी सलाह दी जाये। यदि वे इसपर भी लगान न दें तो वे इसके लिए स्वतन्त्र हैं। जो लोग लगान दें वे आन्दोलन में दूसरी जो भी सहायता दे सकें अवश्य दें। बाकी सारा भारत लगान देगा इसका अर्थ यह तो नहीं है कि वह हार गया। मैं ऐसे लोगोंसे अनेक प्रकारकी सहायता लूँगा। इस प्रकार मेरी दो सलाहें हुई:

१. बारडोली और आनन्दके लोगोंको सामुदायिक सविनय अवज्ञा भंग करनी हो तो वे लगान न दें, फिर चाहे उनकी इनामी जमीनें भी जब्त क्यों न कर ली जायें।
२. इनके अतिरिक्त दूसरे ताल्लुकेके लोगोंको मेरी यह सलाह है कि वे लगान दे दें, किन्तु असहयोग में दूसरी तरहकी सहायता दें।

मेरी इन सलाहोंके बावजूद जिन लोगोंको यह निश्चय हो कि वे सब शर्तोंका पालन कर सकेंगे और अपनी जिम्मेदारीपर लगान न दें वे अवश्य ही धन्यवादके पात्र होंगे। किन्तु उन्हें यह गर्व न करना चाहिए कि वे स्वयं बहुत साहसी हैं और दुसरे लोग कायर हैं। अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार सभी लोग काम करते हैं। ऐसा मानकर भारी त्याग करनेवाला व्यक्ति भी नम्र रहे और अधिक त्याग करनेके लिए तैयार हो।

श्री महादेवका पत्र

नीचे मैं श्री महादेव देसाईका पत्र[१] सम्बोधन और हस्ताक्षर छोड़कर अक्षरशः दे रहा हूँ। मैं इसे जेलके नियमोंके विरुद्ध भेजा हुआ मानता हूँ। मैंने दक्षिण आफ्रिकामें ऐसे पत्रोंका उपयोग करनेसे भी इंकार कर दिया था, किन्तु यहाँ मैं देखता हूँ कि महादेव देसाईने जो निर्दोष नियमभंग किया है वह क्षम्य माना जाना चाहिए। जेलमें जो डायरशाही चल रही है उसको समयपर प्रकट करनेका दूसरा कोई उपाय नहीं है। इस नियमभंगके फलस्वरूप कोई कष्ट भोगना पड़ेगा तो महादेवको ही भोगना पड़ेगा। यदि उन्हें भी लक्ष्मीनारायणकी तरह बेंत लगें और उनकी रीढ़में घाव हो जायें तो भी कोई परवाह नहीं। ऐसा जोखिम उठाकर भी महादेव के लिए पत्र लिखना

  1. यह पत्र यहाँ नहीं दिया गया है। इसमें राजनैतिक कैदियोंसे दुर्व्यवहार किये जाने और दो स्वयंसेवकों, कैलाशनाथ और लक्ष्मीनारायणको वैत लगाये जानेकी बात कही गई थी।