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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सहन करने में संयुक्त प्रान्तके हिन्दू-मुसलमान, बंगालके हिन्दू और मुसलमान और पंजाब के हिन्दू, पठान और सिख उत्तीर्ण हो चुके हैं। अब बारडोली और आनन्द, जिन्होंने बहुत यश पाया है, जल्दी तैयार न होंगे तो हमारी लाज अवश्य जायेगी। हमें जेल तो जाना ही है, किन्तु हमें मरनेकी योग्यता और शक्ति प्राप्त करनी है। जब योग्यता आती तो शक्ति भी आती ही है। सब लोग खादी पहनने लग जायें। कमेटीके पास खादीनगरमें काममें लाई हुई पवित्र खादी है। सब उसका उपयोग कर लें और उसके बाद अपने ताल्लुकेमें तैयार की हुई खादी ही पहनें। स्त्रियाँ भी, आज सबका जो सामान्य धर्म है उसका पालन करने लग जायें। लोग उद्योगी बनकर घर-घरमें चरखे चलाने लग जायें, अच्छा मजबूत सूत कातें, गाँव-गाँवमें सुन्दर पिंजाई हो, ढेढ़ और भंगीको सब भाई समझें और उनकी सेवा करें, उनके बच्चों को राष्ट्रीय शालाओं में दाखिल करें और उनको स्वयं जाकर लायें, उनसे प्रेमपूर्ण बरताव करें और जो लोग सरकारके सहयोगी हों उनको निर्भय बनायें। हिन्दू, मुसलमान, पारसी और ईसाई सब आपसमें मेलसे रहें। इसमें कठिनाई क्या है? इसमें खर्च भी क्या लगता है? चरखा और खादी तो हमें पैसा देते हैं। दूसरी बातें भी विचार-दोषको दूर करनेवाली हैं। इसमें कठिनाई तो कुछ नहीं होनी चाहिए। मेरी प्रार्थना है कि बारडोली-निवासी रात-दिन सतत श्रम करें और ऐसी योग्यता प्राप्त करें। वे अधिकसे-अधिक २० तारीखतक मन्त्री या प्रमुखसे अपनी योग्यता और तैयारीके सम्बन्ध में प्रमाणपत्र लेकर भेज दें । इसी प्रकार आनन्द निवासी भी अब्बास साहबका प्रमाणपत्र लेकर उसी तारीख को या उससे पहले भेजें।

यदि सच्चे हों तो

यदि ये भाई सच्चे और साहसी हों तो सरकारी लगान देना आजसे ही बन्द कर दें। जिसने यह निश्चय कर लिया हो कि लड़ाई तो लड़नी ही है, कमसे कम वह तो लगान देना बन्द कर ही दे। ताल्लुकेके सभी लोग लगान देनेके बाद यह न कहें कि हमें अब लड़ना हैं।

दूसरोंके बारेमें क्या?

मुझसे कुछ लोगोंने कहा है कि लगानबन्दीके लिए तो सारा गुजरात तैयार है। तो क्या मैं सबको लगानबन्दी करने की सलाह न दूँगा? यह सलाह मैं नहीं दे सकता। जो व्यक्ति अपनी इच्छासे लगान न देना चाहे उसे मैं लगान देनेके लिए बाध्य नहीं करूँगा। इस तरह बाध्य करनेवाला मैं कौन हूँ? किन्तु सब लोगोंसे लगानबन्दीके लिए कहनेकी जोखिम मैं न लूँगा।

लगानबन्दी करनेमें हमारा निजी स्वार्थ नहीं है; हमें तो लगानबन्दीमें अपनी विनय दिखानी है। और यदि हम सविनय लगानबन्दी करना चाहते हों तो हमें शुद्ध बनना चाहिए। इसलिए जो हिन्दुओं, मुसलमानों, ईसाइयों और पारसियोंके बीच एकता स्थापित करना अपना धर्म मानते हैं, जिन्होंने शान्ति-रक्षाकी बात समझ ली है, जो ढेढ़ों और भंगियोंको अपने भाईके समान मानकर उनका स्पर्श करते हैं और उससे