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मानें तो हम कभी चिन्ता ही न करें। किन्तु जो होना होगा सो होगा, यह बात हम तभी कह सकते हैं, जब हम अपनी ओरसे पूरा प्रयत्न कर लें। मनुष्यके प्रयत्नके पीछे ईश्वरकी सम्पूर्ण कृपा होती ही है――उसे ईश्वरकी कृपाका सहारा अवश्य मिलता है। ईश्वरपर विश्वास रखनेका अर्थ यह है कि जब हमारी सम्पत्ति लूटी जाये तब भी हम ईश्वरको धन्यवाद दें। यदि हम अपनी सम्पत्ति न लूटने की शर्तपर धन्यवाद देते हैं तो यह तो सौदा करना हुआ। ईश्वर सौदा नहीं चाहता। उसे तो भक्ति चाहिए और वह अपने भक्तकी भक्तिकी कड़ी परीक्षा लेता है। वह जितना दयालु है उतना ही निर्दयी भी है। न्यायका विचार करते समय वह किसीकी परवाह नहीं करता और किसीके प्रति पक्षपात नहीं करता। वह भक्तको और जो भक्त नहीं हैं, सभीको उनके कर्मों के अनुसार फल देता है। भक्त सत्कर्म करनेसे अच्छा फल और अभक्त कुकर्म करनेसे बुरा फल पाते हैं।

इस लड़ाई में दम्भ, द्वेष और अधीरताके लिए स्थान नहीं है। इसीसे तो इसको धर्मयुद्ध कहा गया है। ईश्वर करे, गुजरात धर्म-भावनाका परिचय दे। और वह धर्मभावनाका परिचय देगा ऐसी आशासे तो मैं जीवित हूँ।

खरीदार तो मरेगा ही!

मैं सुनता हूँ कि खेड़ा जिलेकी शुद्धता तो नाममात्रकी ही है। खेड़ाके लोग किसी सरकारी आदमीको न मारेंगे, किन्तु यदि पाटीदारका माल नीलाम होगा और उसको खरीदनेवाला कोई मिल जायेगा तो वह तो जीवित बचकर न जायेगा। उससे तो अवसर आनेपर पाटीदार ‘बच्चा’ वैर चुकाये बिना न छोड़ेगा। यह अहिंसा कैसी है? यदि कोई हमारी सम्पत्ति खरीदे तो वह सरकारी आदमी ही हुआ। हमने प्रस्ताव पास किया है कि हम सरकारी आदमीको नहीं मारेंगे। तब उस खरीदारको कैसे मारा जा सकता है? फिर हमारी प्रतिज्ञामें ऐसा कोई अपवाद तो है नहीं और यदि पाटीदार अथवा अन्य कोई इस प्रकार विचारमें भी अपनी प्रतिज्ञाका त्याग करेगा तो स्वराज्य निश्चय ही नहीं मिलेगा। चाहे जैसे भले-बुरे मार्ग से स्वराज्य प्राप्त करना हमारी प्रतिज्ञा नहीं है। हमें स्वराज्य अहिंसा और सत्यके द्वारा प्राप्त करना है। यह कांग्रेसका सामान्य धर्म है और असहयोगियोंका विशिष्ट धर्म है। हमें यह न भूल जाना चाहिए कि जो भी लोग कांग्रेस में सम्मिलित होते हैं उन सबके लिए अहिंसा और सत्यका पालन लाजिमी है। असहयोगमें क्रोध और हिंसाके लिए बहुत अवकाश रहता है। इसीलिए अधिक सावधानीके रूपमें असहयोगके साथ शान्तिमय शब्द जोड़ दिया गया है। अतः मुझे आशा है कि गुजरातकी लाज रखने के लिए उत्सुक पाटीदार अथवा अन्य लोग अपने मनमें से हर प्रकारके मलिन विचार और भयको तुरन्त ही बिलकुल निकाल देंगे।

बारडोली और आनन्द

इन दोनों ताल्लुकोंका एक विशेष कर्त्तव्य है। यदि वे अब जल्दी तैयार न होंगे तो उनकी और गुजरातकी लाज जानेवाली है। निर्भयतामें, जेल जानेमें और मारपीट