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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

सरकार तो जिस-जिस भयसे हमें वशमें कर सकती है उस उस भयको दिखाकर हमें वशमें करनेका प्रयत्न करेगी। यदि वह यह देखेगी कि हमें जेल जानेसे जुर्माना देना कठिन लगता है तो हमपर जरूर जुर्माना करेगी। कुछ स्थानोंमें तो इस समय भी जेल और जुर्माने दोनों ही चल रहे हैं।

हमें अपनी स्थावर और जंगम सम्पत्तिकी जब्तीका भय बिलकुल छोड़ना पड़ेगा। अन्यायी राज्यमें धनवानोंको अन्यायमें भाग लेना पड़ता है। इसलिए अन्यायी राज्यमें गरीबी ही पुण्यका मार्ग है। अतः हमें यह बात जाननी ही चाहिए कि यदि हम असहयोगी रहना चाहते हैं तो हमें धनका लोभ अवश्य छोड़ना पड़ेगा। हमारा असहयोग तभी पूरा माना जायेगा जब हम यह निश्चय कर लेंगे कि भले ही हम भूखे मर जायें, किन्तु हम अन्यायके आगे सिर नहीं झुकायेंगे।

यह बात भी समझ लेने योग्य है कि मनुष्य जब जुर्मानेका भय छोड़ देता है। तब सरकारको जुर्मानेका रुपया वसूल करना कठिन हो जाता है। हजार लोगोंको जेल भेजने की बजाय, हजार लोगोंकी सम्पत्ति नीलाम करना अधिक कठिन है। किन्तु कैद की सजा थोड़े-से लोगोंको ही दी जा सकती है। बहुतसे लोग कोई काम करें तो उनको रोकना लगभग असम्भव हो जाता है। सम्पत्ति जब्तकी जा सकती है किन्तु वह बेची किसको जाये? जमीनका कब्जा तो लिया जा सकता है, किन्तु वह उठाकर दूसरी जगह तो नहीं ले जाई जा सकती? एक मनुष्यकी जमीनको नीलाम में खरीदनेका इच्छुक दूसरा मनुष्य कौन होगा?

फिर जो स्वराजवादी हैं उन्हें अपनी मान्यतापर विश्वास तो होना ही चाहिए इसलिए स्वराजवादियोंको यह विश्वास रखना चाहिए कि यदि उनकी सम्पत्तिपर सरकार आज अधिकार कर लेती है तो स्वराज्य मिलनेपर वह उन्हें वापिस मिलेगी ही। जनरल बोथाके पास हजारों बीघे जमीन थी। उनके पास जितने पशु थे उतने अन्य किसी मनुष्यके पास न थे। उन सबपर अंग्रेजोंकी सेनाने अधिकार कर लिया था। किन्तु क्या इससे श्री बोथाने हार मानी? वे खुद लड़े और अन्तमें अपनी सम्पत्तिपर फिर अधिकार प्राप्त कर लिया, इतना ही नहीं; बल्कि उनका स्थान दक्षिण आफ्रिकामें एक राजाके समान हो गया। उनका यह विश्वास था कि यदि वे जीवित रहेंगे तो अपनी सम्पत्ति वापिस ले लेंगे, और यदि मर जायेंगे तो उन्हें स्वर्ग मिलेगा। हमारी लड़ाई तो दूसरोंको मारनेकी लड़ाई नहीं है; अतः हमें तो सम्पत्तिके सम्बन्धमें बेफिक्र ही रहना चाहिए। सवाल यह उठता है कि यदि सरकार हमारी सम्पत्ति ले ले तो हम खायेंगे क्या? किन्तु जहाँ हमने यह प्रतिज्ञा की है कि हम भूखे मरेंगे तो भी झुकेंगे नहीं, वहाँ हमें अपने बारेमें या भूखों मरनेके सम्बन्धमें क्या विचार करना है? भारत जैसे विशाल देशमें कोई-न-कोई तो हमें खानेके लिए देगा ही, और अब तो हमारे पास अपना प्रिय चरखा है। तब हमें क्या चिन्ता हो सकती है? जहाँ पूरा परिवार भली भाँति पींजना और कातना जानता है वहाँ हमें अपने पेटकी तनिक भी चिन्ता नहीं होनी चाहिए।

हमारे मनमें जितना भी भय पैदा होता है वह सब हमारे अविश्वाससे पैदा होता है। यदि हम ईश्वरपर विश्वास रखें अर्थात् वह जैसा चाहेगा वैसा होगा, यह