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हमारे हिस्से में मौत ही रखी हो? मैं तो यही चाहता हूँ कि यदि भारतको मृत्युके भयको भी जीतना हो तो उसका भार उठाना गुजरात के हिस्से में आये। गुजरातको बहुत नामवरी मिली है। उसने अपने आँगन में कांग्रेस अधिवेशन करनेका सम्मान प्राप्त किया है। उसकी कीमत वह मृत्युसे चुकाये तो वह कोई बड़ी कीमत नहीं होगी। और जो स्वेच्छासे मृत्युसे भेंट करता है वह तो अमृत निद्रा भोगता है। मृत्यु दीर्घ निद्रा है। मुसलमान और ईसाई भाई कहते हैं कि सब कयामत के दिन कब्रोंमें से उठेंगे। हिन्दू भाई कहते हैं कि मृत्यु एक चोलेको छोड़कर दूसरे चोलेमें जाना है और ऐसा करते हुए, एक दिन ऐसे धाम में पहुँचना है कि जहाँ मनुष्य एक दिन भी नहीं सोता। तीनों मानते हैं कि मृत्युका अर्थ सर्वथा नाश ही नहीं है। धर्मकी परीक्षा तो मृत्युके समय ही होती है। जो रोता-बिलखता मरता है, जो मरना नहीं चाहता, वह मरनेपर अवगतिको प्राप्त होता है। हम ऐसी मृत्युको प्राप्त हों इसकी अपेक्षा हम मृत्यु रूपी परम मित्रसे स्वयं भेंट करनेके लिए क्यों न निकल पड़ें। यह बात बिलकुल सच है कि यदि गुजराती――भारतीय――भाई मृत्युका भय छोड़ दें तो बहुत कम लोगोंको मरना पड़ेगा। हम डरते हैं इसीलिए गुलाम हैं। यदि हम कैद, मारपीट, मृत्यु और अपने मालकी लूटका भय छोड़ दें तो हम किसी भी मनुष्य- को मारनेका न विचार करें और न किसी मनुष्यको मारें। इसका अर्थ यह है कि दूसरोंको मारनेका विचार छोड़ने के साथ मरने की तैयारी जुड़ी होती है और ज्यों ही मरने की तैयारी हुई कि फिर उसको मारने की उत्सुकता किसीको नहीं होगी। इसीलिए इस संसारको मनुष्य के मनकी तरंग कहा गया है। हम दूसरोंको डरायेंगे तो स्वयं डरेंगे, दूसरोंको मारेंगे तो स्वयं मरेंगे। सर्प भी जब डरता है तभी हमें उसता है।

मृत्युका भय छोड़ देना चाहिए यह लिखना आसान है किन्तु ऐसा करना आसान नहीं है, यह तो मैं जानता ही हूँ। इसलिए मैं यह नहीं मानता कि सब गुजराती स्त्री-पुरुष मृत्यु-भयको एक क्षणमें छोड़ देंगे। फिर भी मैं यह आशा जरूर करता कि गुजरात में ऐसे स्वराज्य-प्रेमी लोग मौजूदा हैं जो मृत्युका भय छोड़ चुके हैं और देश और धर्मकी खातिर मृत्युसे भेंट करनेके लिए बिलकुल तैयार और उत्सुक हैं। मेरी ईश्वरसे प्रार्थना है कि देशमें ऐसे लोगोंकी संख्या बढ़े और हमारी परीक्षाका काल शीघ्र आये।

जान जाये पर माल न जाये

“जेल जायेंगे, मार खायेंगे, मर जायेंगे परन्तु अपना माल न देंगे। कांग्रेसने माल देनेके लिए थोड़े ही कहा है?“ ऐसा कहनेवाले कुछ शूरवीर भी हैं जो मरनेको तैयार हैं; किन्तु अपनी जमीन अथवा अपने ढोर-डंगर नीलाम होने देने के लिए तैयार नहीं। कांग्रेसपर लगाया गया आरोप तो व्यर्थ ही है। कांग्रेसने मालका उल्लेख यह समझकर नहीं किया है कि जो शरीर उत्सर्ग करनेके लिए तैयार है वह अपना सब-कुछ देने के लिए भी तैयार होता है। लेकिन हममें स्थावर और जंगम सम्पत्तिकी तृष्णा इतनी अधिक होती है कि हम शरीर देते हुए भी सम्पत्तिका त्याग करने के लिए तैयार नहीं होते। इसलिए हमें इस सम्बन्ध में विचार करने की जरूरत है।