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टिप्पणियाँ

मनपर इस शिक्षाका अथवा कुशिक्षाका असर इतना गहरा होता है कि वह यही मानती है कि स्त्री तो हर पुरुषके सम्मुख अपंग ही है। परन्तु यदि सत्य और पवित्रता जैसी कोई वस्तु दुनियामें हो तो मैं निःशंक होकर कहना चाहता हूँ कि स्त्रीमें अपनी रक्षा करनेकी पर्याप्त शक्ति मौजूद है। जो स्त्री दुःखके समय भगवान्‌को याद करेगी उसकी रक्षा वह अवश्य करेगा। जो स्त्री मरनेके लिए तैयार है, उसे कोई दुष्ट एक शब्द भी कह सकता है? उसकी आँखोंमें ही इतना तेज होगा कि उसको देखकर सामने खड़े व्यभिचारी पुरुष के होश गुम हो जायेंगे।

मरनेकी शक्ति तो सबमें है; परन्तु उसके प्रयोगकी इच्छा सबको नहीं होती। जब कोई पुरुष किसी स्त्रीको अपवित्र करनेका प्रयत्न करता है और पशु बनकर विषयासक्त होने लगता है तब पुरुष और स्त्री दोनोंको ही आत्मघात कर लेनेका हक है――इतना ही नहीं, तब आत्मघात करना दोनोंका कर्त्तव्य है। जिसकी आत्मामें बल होता है वह आत्महत्या आसानीसे कर सकता है। कोई भी, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, चाहे कितने ही बलवानके पंजे में क्यों न फँसा हो, अपनी जीभको काटकर अथवा हाथ खुले हों तो अपना गला दबाकर प्राण त्याग कर सकता है। वह मरनेके लिए तैयार हो तो चाहे कितना ही जकड़ दिया जाये और चाहे पेड़से बाँध दिया जाये, फिर भी यदि हड्डियाँ टूट जानेकी परवाह न करे तो उस बन्धनसे छूट सकता है। बलवान दुर्बलको अपने वशमें इसलिए कर लेता है कि दुर्बलको अपने प्राण प्यारे होते हैं। इससे वह मरनेके लिए आवश्यक बल नहीं दिखाता। हम गुड़पर चिपके हुए चींटेको जब उससे अलग करते हैं तब उसकी टाँगें टूट जाती हैं; परन्तु वह हमारे बलके वशमें नहीं होता। बालक अपने माँ-बापसे अपना हाथ छुड़ाने के लिए जब बहुत जोर लगाता है तब माँ-बाप उसका हाथ छोड़ देते हैं, क्योंकि यदि वे हाथ न छोड़ें तो उसका हाथ टूटने का डर रहता है। प्रत्येक मनुष्यमें अपने किसी भी अंगको तोड़ लेनेकी शक्ति होती है; किन्तु वह उससे उत्पन्न कष्ट अर्थात् मृत्युके कष्टको सहन करनेके लिए तैयार नहीं होता। परन्तु ऐसी तैयारी करना तो प्रत्येक स्वराज्य-वादीका, प्रत्येक स्त्री-पुरुषका धर्म है। यदि हम ऐसी शक्ति के लिए परमात्मासे रोज प्रार्थना करें तो वह अवश्य मिलती है। प्रत्येक बहनसे मेरी प्रार्थना है कि वह प्रति दिन प्रातः काल उठकर यह निश्चय करे――“ईश्वर तू मुझे पवित्र बनाये रख। तू मुझे अपनी पवित्रताकी रक्षाके लिए आवश्यक बल दे और मुझे ऐसी शक्ति दे जिससे मैं प्राण-त्याग करके भी अपनी पवित्रताकी रक्षा कर सकूं । तेरे समान रक्षकके होते हुए मुझे भय किसका है?” सद्भावसे की गई ऐसी प्रार्थना प्रत्येक स्त्रीकी रक्षा करेगी।

किन्तु पुरुषके बारेमें क्या?

उक्त विचारोंकी चर्चा करते हुए पुरुष होनेके कारण मुझे लज्जाका अनुभव होता है। पुरुष जो अपनी माताके पेटसे जन्मा है, जिसे उसने नौ महीने तक अपनी कोख में रखा है, जिसके लिए उसने इतना कष्ट पाया है, जिसे सुलाकर वह स्वयं सोई है और जिसे खिलाकर उसने खाना खाया है, क्या वह पुरुष उसी स्त्री जातिका इतना द्रोही बनकर पैदा हुआ है कि उससे स्त्री जाति सदा डरती रहे? स्त्री