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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बच्चोंकी देखरेख भी करेंगी। यदि हमारे बच्चोंने विनय और शिष्टता सीखी होगी तो वे इन स्त्रियोंका बहुत सम्मान करेंगे और अधिक विनयशील बनेंगे। इससे इन स्त्रियों को भी सेवा करनेका अवसर मिलेगा।

स्त्रियोंका भाग

इस संघर्ष में स्त्रियोंको भी पूरा भाग लेना चाहिए। स्त्रियोंने स्वयंसेविका बनकर कांग्रेस अधिवेशनको सफल बनाया था। कांग्रेसके जीवनमें यह पहला ही प्रयोग था। गुजरातकी बहनोंको यह सौभाग्य प्राप्त हुआ, यह गुजरातके लिए बहुत प्रसन्नताकी बात है। यह प्रयोग पूर्ण सफल रहा और सब लोगोंपर इसका बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा। यदि स्त्रियाँ सभी निरापद सेवा-कार्यों में भाग लेने लगें तो हमारी कार्यशक्ति दूनी हो जाये।

हम यह भी जानते हैं कि सरकार स्त्रियोंको यकायक पकड़ेगी नहीं। पुरुषोंको तो अपनेको गिरफ्तार कराना ही है। इसलिए स्त्रियोंको पुरुषोंके बहुत सारे काम संभाल लेने होंगे।

निर्भयताको आवश्यकता

इसके लिए केवल निर्भयता की आवश्यकता है। जहाँ पवित्रता है वहीं निर्भयता हो सकती है। हमारे मन इतने मलिन हो गये हैं कि हमें स्त्रियोंकी पवित्रताके विषयमें सदा भय ही बना रहता है। ऐसा करके हम गोया सारी दुनियाको बुरा बताते हैं। हम स्त्रीको इतना कमजोर समझते हैं मानो वह अपनी पवित्रताकी रक्षा करने के योग्य ही न हो और पुरुषोंको इतना पतित मानते हैं मानो वे परस्त्रीको सदा केवल निर्लज्ज दृष्टिसे ही देखते हों। ये दोनों खयाल हमें शर्मिन्दा करनेवाले हैं। और यदि हम स्त्री-पुरुष सभी ऐसे ही हों तो हमें मानना होगा कि हम स्वराज्यके लिए बिलकुल अयोग्य हैं। हमें यह मान लेनेका कोई कारण नहीं है कि अंग्रेज स्त्री-पुरुष मर्यादाकी रक्षा करते ही नहीं। अंग्रेज महिलाएँ अनेक सेवा कार्य करती हैं। इसके विपरीत यदि हमें दो-एक नर्सोंकी जरूरत होती है तो हमारे लिए उनको प्राप्त करना भी कठिन हो जाता है।

यदि स्वराज्य सचमुच ही नजदीक आ रहा हो तो स्त्रियाँ अपनी पवित्रताकी रक्षा करनेके लिए दिनपर-दिन अधिकाधिक तैयार होती जायेंगी। उनके मनसे डर दूर होना चाहिए। यह खयाल गलत है कि स्त्रियाँ अपनी पवित्रताकी रक्षा करने के योग्य नहीं हैं। यह अनुभवके भी विरुद्ध है और स्त्री-पुरुष दोनोंके लिए लज्जास्पद है। हाँ, ऐसे नरपशु संसारमें अवश्य हैं जो बलात्कार करते हैं। परन्तु जिस स्त्रीको अपनी पवित्रताका खयाल है उसपर बलात्कार करनेवाला पुरुष आजतक न तो पैदा हुआ है और न होगा ही। हाँ, यह बात सच है कि प्रत्येक स्त्रीमें इतना योगबल, इतनी पवित्रता नहीं है। किन्तु इस स्थिति के कारण भी हम लोग ही हैं। हम आरम्भसे ही लड़कियोंको ऐसी तालीम देते हैं जिससे वे अपने सतीत्वकी रक्षा करने में समर्थ नहीं होतीं। और अन्तमें जब लड़की बड़ी होकर नारी बनती है तब उसके