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टिप्पणियाँ

ही है कि हमारे बच्चे इस संघर्ष-कालमें पढ़े बिना रहें इसमें उनका और राष्ट्रका लाभ है। जिस मकान में विषैली हवा उत्पन्न हो गई हो उसे हम, जबतक वह हवा साफ न हो जाये तबतक के लिए छोड़ देते हैं। जैसे हमारे उस काममें बुद्धिमानी है। वैसे ही इन सरकारी शालाओंको छोड़ने में बुद्धिमानी है और लाभ भी है। जो माँ-बाप इतना भी नहीं समझ सकते, यह मानना चाहिए कि उनमें स्वराज्य लेनेकी लगन पैदा नहीं हुई है। सरकारने नडियादकी नगरपालिकाओंकी शालाओंपर जबरदस्ती कब्जा कर लिया है। यदि हम इतनेपर भी अपने बच्चोंको सरकारी शालाओंमें भेजते रहेंगे तो माना जायेगा कि हम ऐसे ही बरतावके योग्य हैं। इसलिए अब्बास साहब और उनके साथियोंने अपने गलेमें सूचना-पट्ट डालकर घूमना शुरू किया है यह ठीक ही किया है।

लोगोंका तेज

सूरत, अहमदाबाद और नडियाद इन तीनों शहरोंके लोगोंका तेज देखा जा रहा है। इन तीनों शहरोंकी नगरपालिकाओंने शिक्षाके[१] सम्बन्ध में सरकारसे असहयोग कर दिया है। तीनोंमें लोक निर्वाचित प्रतिनिधियोंने बहुमतसे नगरपालिकाओंकी मार्फत दी जानेवाली शिक्षाका राष्ट्रीयकरण कर दिया है। इन शालाओंके मकानोंको सरकारने जब्त कर लिया है। यह बात सहन करने लायक नहीं है।

सरकारकी इस लूटपाटको व्यर्थ करना लोगोंके हो हाथमें है। यदि माँ-बाप अपने बच्चोंको सरकारके नामपर चलाये जानेवाले स्कूलोंमें न भेजें और शिक्षक उनमें काम करने के लिए न जायें तो सरकारने ताले तोड़कर जिन मकानोंपर कब्जा कर लिया है वे मकान खाली पड़े रहेंगे। और उसने गैर-कानूनी तौरपर उनका जो रुपया जब्त कर लिया है वह हमको वापिस मिल जायेगा। हमें सरकारकी इस लूटपाटसे डरना नहीं चाहिए और निर्भय रहते हुए यह मानना चाहिए कि हमें ये मकान अवश्य वापिस मिलेंगे और यह रुपया भी वापिस मिलेगा।

किन्तु तबतक बच्चे क्या करें? यदि लोगोंमें समझ हो तो हम उनके पंचायती स्थानोंका उपयोग बच्चोंको शिक्षा देनेके लिए कर सकते हैं; किन्तु यदि ये स्थान न मिल सकें तो हमें बच्चोंको खुलेमें ही पढ़ाना-लिखाना चाहिए। हमें उनसे सूत कतवाना चाहिए, उनसे भजन गवाने चाहिए और शारीरिक व्यायाम करवाना चाहिए। कांग्रेसने जो प्रस्ताव[२] पास किया है उसके अनुसार हमारे शिक्षकोंको तो जेल जानेकी तैयारी करनी है; इसलिए फिलहाल हमारी शिक्षाका रूप ऐसा होना चाहिए कि कमसे- कम शिक्षकोंसे हमारा काम चल सके। मुझे तो प्रौढ़ स्त्रियोंके हाथमें अपने बच्चोंको सौंपने में भी कोई संकोच नहीं होगा। वे चरखे तो चलायेंगी ही। साथ ही वे

  1. देखिए “नगरपालिकाओंपर विपत्ति”, १५-१२-१९२१ और “टिप्पणियाँ”, ८-१-१९२२ का उप-शीर्षक “गुजरात के लिए स्वर्ण अवसर”।
  2. दिसम्बर १९२१ में अहमदाबादमें स्वीकृत। देखिए “भाषण: अहमदावाद के कांग्रेस अधिवेशनमें―१”, २८-१२-१९२१।