पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/२१९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९५
टिप्पणियाँ

किया है वे शुद्ध खादी लेनेके लिए दुकानोंपर नहीं जाते। उन्हें तो खादी उनके घर जाकर दी जायेगी तभी वे उसे पहनेंगे। यदि बहनोंने अपने साथ खादी रखी तो वे जिन्होंने विदेशी अथवा मिलके बने कपड़े पहने हों उन्हें खादी दिखाकर ललचा सकती हैं। उन्हें घर-घर घूमकर खादी बेचनी चाहिए। वे खादीकी टोपियाँ भी अपने साथ रखें और बेचें। ऐसा करनेसे वे निर्भय बनेंगी तथा सरकार उन्हें पकड़ने के लिए ललचायेगी। जबतक स्त्रियोंके कामका असर सरकारके महसूलपर नहीं पड़ता अथवा वे दूसरी तरहसे लोगोंके बलमें वृद्धि करने में सहायक नहीं होतीं तबतक सरकार उनको पकड़नेवाली नहीं है। और जब स्त्रियोंमें संगठन-शक्ति आदि आ जायेगी तभी उनका जेलमें जानेका विचार अधिक उचित होगा।

मुझे यह भी उम्मीद है कि बहनोंने जो प्रतिज्ञा ली है वे उसका पालन पूरी तरह करेंगी। मेरा खयाल है कि वे शान्ति रखेंगी तथा हिन्दु और मुसलमान, दोनोंसे प्रेम करेंगी। लेकिन क्या वे घरोंमें भी शुद्ध खादी ही पहनेंगी? क्या वे भंगियों, ढेढों और अन्य अस्पृश्योंको भाईके समान ही मानेंगी? क्या उन्हें जूठा अथवा गन्दा भोजन देना बन्द करेंगी? वे उनके स्पर्शसे अपनेको अपवित्र तो नहीं मानेंगी? जिन बहनोंने इस प्रतिज्ञापर हस्ताक्षर किये हैं उनमें सभी वर्णोंकी बहनें हैं। उतनी बहनें अगर विवेकपूर्वक अपनी प्रतिज्ञाका पालन करेंगी तो उनकी संख्या १४० से १,४०० और १,४०० से १४,००,००० होने में देर नहीं लगेगी।

मैं तो ऐसी आशा और ऐसी श्रद्धासे ही इन बहनोंके पवित्र नाम देता हूँ।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १५-१-१९२२
 

७८. टिप्पणियाँ

नडियादका प्रयत्न

नडियादमें अब्बास साहब और उनकी टुकड़ीने जेल जाने का जो प्रयत्न किया था वह व्यर्थ हो गया लगता है। उन्होंने गलेमें सूचना पट्ट डाले और प्रदर्शन बढ़िया रहा सही लेकिन वे जेल तो नहीं जा सके। इससे उन्हें निराशा हुई है। किन्तु सत्याग्रही तो कभी निराश होता नहीं। वह तो सदा प्रयत्न करता जाता है और ईश्वर में आस्था बनाये रखता है। देनेवाला तो ईश्वर ही है। वह अपनी इच्छा के अनुसार देता है। उसकी इच्छामें मनमानी नहीं होती। वह कभी भूल नहीं करता। उसकी इच्छामें तो शुद्ध न्याय ही होता है। इसका अर्थ यह है कि हमारे प्रयत्नको देखते हुए जो कुछ उचित होता है वह न्यायाधीश हमें उतना ही देता रहता है।

इसका एक फल तो हुआ है। अब्बास साहब गलेमें सूचना पट्ट डालकर घूमे; यह फल कोई छोटा फल नहीं है। कहाँ वह जज जो दूसरोंको डाँटता-डपटता था और कहाँ आज यह अवकाश प्राप्त जज और उसके साथी जो गलेमें सूचना पट्ट