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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

यदि एक सरकारको हटाकर दूसरी सरकारको प्रतिष्ठापित करनेकी बात होती तो मैं स्त्रीवर्गको आगे आने की सलाह कभी न देता। वैसे काममें बहुत गन्दगी है, यह मैं पहले ही देख चुका हूँ। लेकिन इस लड़ाईके अन्तमें तो रामराज्य स्थापित होनेकी आशा है। इस लड़ाईके अन्त में गरीबोंको आश्रय मिलनेकी आशा है। इस लड़ाईके अन्तमें स्त्रियोंके सुरक्षित होने की उम्मीद है। इस लड़ाईके अन्तमें हिन्दुस्तानमें भूखसे पीड़ितोंकी भूख दूर किये जानेकी उम्मीद है। इस लड़ाईके अन्तमें चरखेका पुनरुद्धार होने की आशा है। इस लड़ाईके अन्तमें कौमों के बीच व्याप्त पारस्परिक द्वेषरूपी विषके कम होनेकी आशा है। इस लड़ाईके अन्त में अस्पृश्य मानी जानेवाली जातियों को अस्पृश्यता के मिटनेपर उन्हें भी भाईके समान माने जानेकी उम्मीद है। इस लड़ाईके अन्त में शराबखानों और शराब पीनेकी आदत के समाप्त होने की आशा है। इसके अन्त में खिलाफतकी और गायकी रक्षा होनेकी उम्मीद है। इस लड़ाईके अन्तमें पंजाब के घाव भरनेकी उम्मीद है। इसके अन्त में प्राचीन सभ्यताको अपना स्थान मिलनेकी तथा प्रत्येक घरमें चूल्हे के समान ही कामधेनु-रूप चरखेके दाखिल किये जानेकी उम्मीद है।

जिस प्रवृत्ति में इतनी शुभ आशाएँ समाहित हैं उस प्रवृत्तिसे स्त्रियाँ भला कैसे विमुख रह सकती हैं। इसलिए मैं स्त्रियोंसे आगे आकर अपना भाग अदा करनेकी-विनती कर रहा हूँ। इन्हीं आशाओंके फलस्वरूप में हिन्दुस्तानकी स्त्रियोंमें उत्साह जगा देखता हूँ।

तथापि इस उत्साहसे भ्रमित होकर क्या मुझे स्त्रियोंको जेल जाने की भी सलाह देनी चाहिए। मुझे लगता है कि मैं इसके अलावा कुछ और कर ही नहीं सकता। यदि मैं इसे उत्तेजन न दूँ तो हिन्दुस्तानकी स्त्रियोंके प्रति मेरे मनमें जो श्रद्धाभाव है उसपर लांछन लगता है। स्त्रियोंके बिना यज्ञ अधूरा रहता है। निर्भयताकी जितनी जरूरत पुरुषोंको है उतनी ही जरूरत स्त्रियोंको भी है। इसलिए मैंने सोचा कि स्त्रियाँ भले ही अपना नाम दर्ज करवाकर जेल जानेकी बातकी और जेल जानेके खयालकी आदत डालें। इसके अतिरिक्त मैंने यह भी सोचा कि यदि स्त्रियोंको जेलके विचारसे अकुलाहट न हो तो पुरुषोंके जेल जानेका मार्ग सुगम हो जायेगा।

लेकिन इस बारे में जैसे मेरी जवाबदेही है वैसे ही उन बहनोंकी भी जवाबदेही है जिन्होंने इस मामलेमें पहल की है। नाम दर्ज करवा लिया है इसलिए अब उन बह्नोंको काम करने में जुट जाना होगा। ये बहनें शराब की दूकानोंपर धरना दे सकती हैं। उनके धरना देनेसे शराब पीनेवाले अवश्य शर्मिन्दा होंगे। बहनें वैसा काम करना चाहे तो उन्हें अब्बास साहबकी तरह गलेमें तख्तियाँ लटकानी पड़ेंगी।[१] उन्हें शराब पीनेवालों के घरोंको ढूँढ़कर वहाँ उनसे प्रार्थना करने के लिए जाना पड़ेगा। बह्नोंको मेरी सबसे पहली सलाह तो यह है कि वे फिलहाल शराबकी दुकानोंपर धरना देनेके विचारको स्थगित रखें और खादी बेचने के लिए निकल पड़ें। शुद्ध खादी सब खादीकी दुकानोंमें नहीं मिलती। इसके अतिरिक्त जिन्होंने स्वदेशीका विचार नहीं

  1. देखिए अगले पृष्ठपर उप-शीर्षक “नडियादका प्रथत्न”।