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गुजरातकी बहनें

सहयोग करूँगा और उचित निष्कर्षोपर पहुँचने में अपने दल तथा खासकर कांग्रेस कार्य-समितिकी ओरसे पूरी मदद करूँगा।

इसके बाद अध्यक्षने लोगोंसे आम बहस-मुबाहसेके लिए अनुरोध किया, जिसमें सर्वश्री एस० आर० बोमनजी, जे० ए० वाडिया, जे० बी० पेटिट, एस० श्रीनिवास आयंगार, शेषगिरि अय्यर, सत्यमूर्ति, गोकरननाथ मिश्र तथा कुंजरूने भाग लिया।

उत्तर में श्री गांधीने बताया कि परिषद् के प्रस्तावों में असहयोगी लोग क्यों नहीं शरीक हुए और उनका ऐसा करना किस तरह वांछनीय था। उन्होंने नरम दलवालों और इंडिपेंडेंटोंसे अनुरोध किया कि वे सरकार और असहयोगियोंके बीच मध्यस्थका काम करें, और कहा कि परिषद्‌ के कामको सफल बनानेके लिए असहयोगी लोग हर तरकी सहायता देने को तैयार हैं।

बहस के दौरान श्री गांधी असहयोगियोंकी ओरसे एक बार और बोले । उन्होंने असहयोगियोंके नेताको हैसियतसे परिषद् द्वारा पास किये गये प्रस्तावोंके सम्बन्धमें अपनी स्थिति स्पष्ट की।[१]

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, १८-१-१९२२

७७. गुजरातकी बहनें

जब श्रीमती वासन्तीदेवी दास, उर्मिलादेवी सेन और सुनीतिदेवी पकड़ी गईं[२] तब अहमदाबादकी कुछ एक बह्नोंने निश्चय किया कि स्त्रियोंके एक स्वयंसेवक दलकी स्थापना की जाये और जेलयात्रा करनेका मार्ग ढूंढ़ा जाये। इस निश्चय के फलस्वरूप बहनोंके सम्मुख प्रतिज्ञापत्र रखे गये। पहले विचार यह था कि पचास नाम दर्ज होने के बाद सूची प्रकाशित की जाये। यह बात कांग्रेस अधिवेशन होनेसे पहले की है।

इस बीच बंगाली बहनें तो छोड़ दी गईं। सरकारमें उन्हें रोक रखने की ताकत न थी। इसलिए अहमदाबादकी सूचीको प्रकाशित करने की बात मुल्तवी कर दी गई। तथापि स्त्रियोंका हस्ताक्षर करना तो जारी ही रहा। फलस्वरूप लगभग १४० स्त्रियोंने हस्ताक्षर किये हैं। वे अब भी हस्ताक्षर कर रही हैं। इनमें से तीन बहनोंको जेल-यात्राका कुछ अनुभव है।

परन्तु हस्ताक्षर करनेसे क्या होगा? इन हस्ताक्षरोंके पीछे जो निश्चय है वह अमूल्य है। फिर जहाँ हस्ताक्षर करने की कीमत है वहाँ हस्ताक्षर करानेवालोंकी जवाबदेही बढ़ जाती है और इस विचारके प्रस्तोताके रूपमें मेरी जवाबदेही सबसे अधिक है।

  1. १६-१-१९२२ के बॉम्बे क्रॉनिकलके अनुसार “परिषद् के समाप्त होनेके पहले [१५ जनवरीको] परिषद के सम्मुख पेश किये जानेवाले प्रस्तावों की शर्तें तय करनेके लिए एक समिति नियुक्त की गई।”
  2. देखिए “महिलाओंका योग”, १५-१२-१९२२।
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