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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दिखाया जाये या अपमानित किया जाये में इसका आग्रह नहीं करता। में जो चाहता हूँ वह सिर्फ यह है कि सरकार परिषद् में सच्ची भावनासे शामिल हो, पश्चात्तापकी इस भावनाके साथ कि उसने जो कुछ बुरा किया है, उसका निराकरण करेगी।[१] उन्होंने बहुत सारी वारदातोंका उल्लेख किया, जिनके कारण देशमें असन्तोष फैला है; और फिर कहा कि जबतक इन कारणोंको दूर नहीं किया जाता और जो-कुछ बुरा किया गया है उसका निराकरण नहीं होता तबतक गोलमेज परिषद् शान्ति और मेलजोलके वांछनीय वातावरणमें नहीं हो सकती। परिषद्का निमन्त्रण स्वीकार करनेमें मेरा और मेरे साथी असहयोगियोंका मंशा परिषद्‌के उद्देश्यके प्रति अपनी सहानुभूति जता देना-भर था। उससे आगे तो में यह समझता हूँ कि अगर असहयोगी लोग परिषद् के प्रस्तावों में शरीक न हों तो यह यहाँ उपस्थित सभी दलोंके लोगोंके प्रति न्याय ही होगा, हालाँकि में आपको विश्वास दिलाता हूँ कि परिषद्‌की कार्यवाही में में पूरा

  1. यहाँ १६-१-१९२२ के बॉम्बे क्रॉनिकलमें इस प्रकार कहा गया है: “महात्माजीने सरकारके अपराधोंकी लम्बी सूची बताई। उन्होंने कहा कि इन अपराधोंके कारण स्थिति ऐसी हो गई है जो मार्शल लॉसे भी बदतर है। उदाहरणस्वरूप उन्होंने दाण्डिक पुलिस (प्यूनिटिव पुलिस) का उल्लेख किया जो सीतामढ़ीपर थोप दी गई है। उन्होंने सम्मेलनमें उपस्थित लोगोंसे पूछा कि क्या आप जानते हैं कि दाण्डिक पुलिस तैनात करनेका मतलब क्या होता है। जबतक सरकारकी स्पष्ट सहमति से ऐसो घटनाएँ होती रहेंगी तबतक किसी सम्मेलनकी बात करना व्यर्थ है। उन्होंने आगे खेदपूर्वक यह स्वीकार किया कि कुछ असहयोगियोंने हिंसासे काम लिया है, और उन्होंने उन सबके ऐसे आचरणके लिए क्षमा मांगी। लेकिन साथ ही उनका खयाल था कि ऐसी घटनाएँ बहुत कम और यदा-कदा ही हुई हैं, और इन घटनाओंको छोड़कर असहयोगकी प्रगति काफी सन्तोषजनक है, तथा इसके जो परिणाम सामने आये हैं उनसे निराश होनेका कोई कारण नहीं दिखाई देता। अपने साथी कार्यकर्त्ताओं द्वारा स्वेच्छापूर्वक और खुशी-खुशी उठाये गये कष्टोंके सम्बन्ध में महात्माजीने बताया कि इस तरह कष्ट उठानेवालों में से किसी भी व्यक्तिने कोई शिकायत नहीं की है। मौलाना शौकत अलीका वजन कारावासके दौरान ३० पौंड कम हो गया है, लेकिन वे तो अपना वजन घटाना ही चाहते थे। डा० किचलू वजन बढ़ाना चाहते थे और उनका वजन बढ़ा है। पर पण्डित मोतीलाल नेहरूको जेलमें वह विश्राम मिला है जिसकी इच्छा वे जेलसे बाहर रहकर कर तो रहे थे लेकिन मिल नहीं पा रहा था। लाला लाजपतराय अपने समयका सदुपयोग राष्ट्रीय स्कूलोंके लिए एक पाठ्य-पुस्तक तैयार करनेमें कर रहे हैं। यहाँ महात्माजीने अपने भाषण में विनोदका पुट देते हुए कहा कि इस प्रकार उनके लिए तो जेल-जीवनसे दुःखी होनेका कोई कारण ही नहीं है।
    “महात्माजीने आगे बताया कि असहयोगियोंने जो सम्मेलनका निमंत्रण स्वीकार किया उसमें उनकी इच्छा मात्र यह थी कि संयोजकोंके प्रति वे अपनी सहानुभूति सिद्ध कर दें, लेकिन वे इससे आगे नहीं जाना चाहते। इस सम्मेलन द्वारा पास किये जानेवाले किसी भी प्रस्तावमें शरीक नहीं होना चाहते। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे उपयुक्त वातावरणमें एक सम्मानजनक समझौता करानेके प्रयत्नों में भी शामिल होना नहीं चाहते। असहयोगियों और अन्य दलोंके बीच एक दीवार है। यह दीवार तबतक नहीं टूट सकती जबतक कि असहयोगी लोग अपना एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त न छोड़ दें या दूसरे दलवाले असहयोगियोंमें शामिल न हो जायें। उनका लक्ष्य कोई सम्मेलन वगैरह नहीं बल्कि यह है कि सरकार यह घोषित करे कि उसे सचमुच अपने कियेपर पश्चात्ताप है, और जबतक सरकार सही रास्तेपर नहीं आती तबतक कोई अनुकूल वातावरण तैयार नहीं हो सकता।...”