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भाषण: नेताओंकी परिषद् में

सम्बन्ध है, यह निमन्त्रण स्वीकार करने के पीछे मेरा मंशा यह देखना है कि पिछले हफ्ते मैंने ‘यंग इंडिया’ के पाठकोंके सामने जो एक छोटा-सा सवाल[१] पेश किया था उसपर अपने नरमदलीय मित्रोंका सहयोग मुझे प्राप्त हो सकता है या नहीं――मेरा मतलब भाषण और संगठन आदि बनानेकी स्वतन्त्रताके सवालसे है। मैं तो आशा करता हूँ कि इस सवालपर अपने नरमदलीय मित्रोंको कांग्रेसके विचारोंसे सहमत कर सकना मेरे लिए सम्भव हो सकेगा।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, १४-१-१९२२

७६. भाषण: नेताओंकी परिषद् में[२]

१४ जनवरी, १९२२

परिषद्को कार्यवाहीका समारम्भ करते हुए पण्डित मदनमोहन मालवीयने उन परिस्थितियोंपर प्रकाश डाला जिनमें परिषद् बुलाई गई थी और उसका उद्देश्य भी बताया। इसके बाद उन्होंने सर शंकरन् नायरसे[३] अध्यक्षका आसन ग्रहण करनेका अनुरोध किया। सर शंकरन् नायरने आसन ग्रहण करते हुए श्री मुहम्मद अली जिन्नासे[४] सम्मेलनके विचारार्थं आयोजकोंकी ओरसे प्रस्तावोंका मसविदा पेश करनेको कहा। श्री जिन्नाने प्रस्ताव पेश किये। उसके बाद अध्यक्षने श्री गांधीसे प्रस्तावोंपर बहस शुरू करनेको कहा।

श्री गांधीने सभी दलोंके नेताओंको विचार-विमर्शके लिए एक मंचपर बुलानेके लिए परिषद् के आयोजकोंको धन्यवाद देते हुए कहा कि मैं तो अपने नरमदलीय भाइयों-के सामने अपना हृदय खोलकर रख देनेको आकुल हो रहा हूँ। जहाँतक खुद मेरा सवाल है, मैं तो बिना किसी शर्तके किसी भी परिषद् में शामिल होनेको तैयार हूँ; लेकिन कांग्रेस और असहयोगियोंकी बात और है। इसके बाद श्री गांधीने किसी भी गोलमेज परिषद् में असहयोगियोंके शामिल होने की शर्तोंका उल्लेख किया, जिनमें एक यह भी थी कि दण्डविधि संशोधन अधिनियम तथा राजद्रोहात्मक सभा अधिनियमके अन्तर्गत जेल भेजे गये लोगोंके अतिरिक्त अन्य राजनीतिक कैदियोंको भी रिहा किया जाये। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा यह शर्त पूरी किये जानेपर हो असहयोगी ऐसे किसी सम्मेलन में शामिल हो सकते हैं। किसीको, यहाँ तक कि जनरल डायरको भी, नीचा

  1. देखिए “जिस समस्याके तत्काल हलकी जरूरत है”, ५-१-१९२१।
  2. यह परिषद् बम्बई में हुई थी।
  3. १८५७-१९३४; कांग्रेसके अध्यक्ष, १८९७ मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश; १९१५ में वाइसरायकी कार्यकारिणी परिषद्के सदस्य।
  4. ४. १८७६-१९४८; मुसलमान नेता; पाकिस्तानके संस्थापक और उसके प्रथम गवर्नर जनरल।