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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आडम्बर हो जाती है। इसलिए जबतक हम अपने विचारोंका प्रकाशन स्वतन्त्रता- पूर्वक कर सकें तबतक अवश्य यन्त्र और टाइपका उपयोग करें। किन्तु जब एक ‘प्रजावत्सल’ सरकार, जो बड़ी चिन्ताकुल होकर मुद्रण-यन्त्र और टाइपोंकी अक्षर-योजनापर बड़े गौरसे निगाह गड़ाये बैठी हो और उसपर अंकुश रखे हुए हो, हमारे हाथसे मुद्रण यन्त्र छीन ले, तो हमें लाचार और दीन नहीं हो जाना चाहिए।

तथापि मैं मानता हूँ कि हस्तलिखित समाचारपत्र एक असाधारण समयके लिए एक असाधारण वीरोचित उपाय ही है। आज यदि हम मुद्रणालय और कम्पोजीटरकी स्टिक के प्रति उदासीन बन जायें तो ऐसा करके हम मुद्रणालयोंके स्वतन्त्र अस्तित्व या उनकी पुनः स्थापनाको ही सुनिश्चित करते हैं।

इसके अतिरिक्त हमें कुछ और भी करना चाहिए। हमें बड़ी-बड़ी समस्याओंको हल करनेका विचार करने के पहले इसी अधिकारको पुनः प्राप्तिके लिए सविनय अवज्ञाका उपयोग करना चाहिए। भाषण स्वातन्त्र्य, सभा-सम्मेलनकी स्वतन्त्रता और मुद्रणस्वातन्त्र्य, इन तीनों अधिकारोंकी पुनःस्थापना लगभग पूर्ण स्वराज्यके समान है। इसलिए बम्बई में पण्डित मालवीयजी आदि प्रमुख देशपुत्रोंके उद्योगसे होनेवाले सम्मेलनसे[१] मैं तो आदरपूर्वक यही आग्रह करूँगा कि वह खिलाफत, पंजाब और स्वराज्यकी बातको एक ओर रखकर इन्हीं बाधाओं को दूर करने के उपाय सोचने में अपनी सारी शक्ति लगाये। इन बातों में हम सबका हार्दिक सहयोग सम्भव है। हमें इन छोटी-छोटी परन्तु महत्त्वपूर्ण बातोंका निबटारा पहले कर लेना चाहिए। इनके हल हो जानेपर बड़ी व जटिल समस्याएँ अपने आप हल हो जायेंगी।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १२-१-१९२२
 

७५. भेंट: ‘बॉम्बे क्रॉनिकल’ के प्रतिनिधिसे

[१४ जनवरी १९२२के पूर्व]

...महात्मा गांधी, जिन्होंने परिषद् मे[२] जाने की अपनी तत्परता व्यक्त की है, ने हमारे प्रतिनिधिको एक भेंटमें बताया कि गोलमेज परिषद् के सम्बन्धमें कांग्रेसने जो स्थिति अपनाई है उससे हटने का कोई सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे किसी सम्मेलनकी उपयुक्त पूर्व पीठिका तैयार करनेके लिए कांग्रेस कार्य-समितिमें मैंने जो शर्तें[३] निर्धारित की थीं उन्हें सरकारको पूरा करना होगा; तभी कांग्रेससे इस योजनासे सहमत होने की आशा की जा सकती है। जहाँतक मेरा

  1. १४ जनवरीको बम्बई में।
  2. सभी दलोंके नेताओंकी परिषद्, जो १४ जनवरी, १९२२ को बम्बई में होनेवाली थी।
  3. देखिए “भाषण: विषय समितिको बैठकमे”, २८-१२-१९२१।