पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/२१२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तो यह जिस रूपमें मुझे मिला था, उसी रूपमें छापा जा रहा है। मूलमें जो वाक्य छोड़ दिये गये हैं उन्हें पढ़नेसे पता चलता है कि देशबन्धु उन वाक्योंमें एक सालके कामका लेखा-जोखा और असहयोगपर अपने सुविचारित मतको विस्तारसे प्रस्तुत करना चाहते थे। लेकिन प्रकाशित पाठमें उनके मतके बारेमें जानकारी पानेकी दृष्टिसे काफी सामग्री मिल जाती है। इसके अलावा उसकी जानकारी हमें देशके नाम उनके उन जोरदार और मनको आन्दोलित कर देनेवाले सन्देशोंसे भी मिल जाती है, जो उन्होंने अपनी गिरफ्तारीसे थोड़ी ही देर पहले दिये थे। पाठकोंको इस जानकारीसे भाषणको समझने में सहायता मिलेगी कि इसे श्री दासने अपनी गिरफ्तारीसे ठीक पहले ही तैयार किया था। भाषण लिखने में जिस आत्म-संयमसे काम लिया गया है, उसे पाठकगण आसानीसे देख सकते हैं, और इस तथ्यको भी वे अवश्य लक्ष्य करेंगे कि देशबन्धु अहिंसाको अपना धर्म मानते हैं। लेकिन इस सरकारको तो ऐसे व्यक्तिके लिए भी जेल ही उपयुक्त स्थान जान पड़ा। इससे अधिक अपकीर्तिकी बात इस सरकार के लिए और क्या हो सकती है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १२-१-१९२२

७४. अखबारोंकी स्वतन्त्रता

दिन-ब-दिन परिस्थितियोंके दबावसे सरकारके ये दावे झूठे सिद्ध होते जा रहे हैं कि नये सुधारोंसे जनताको और अधिक स्वतन्त्रता दे दी गई है और उसके अधिकार बढ़ा दिये गये हैं। ये दावे तो तभी ठीक हो सकते हैं जब वे कठिन से कठिन परीक्षामें भी उत्तीर्ण हो जायें। भाषण स्वातन्त्र्यका मतलब तो यही है कि हमारे वचन कितने ही कठोर और चोट पहुँचानेवाले क्यों न हों, फिर भी उस स्वतन्त्रतापर आक्रमण न किया जाये। और अखबारोंकी स्वतन्त्रताका सच्चा सम्मान तभी है जब वे कड़ी से कड़ी टीका-टिप्पणी कर सकें, तथा सचाईको तोड़-मरोड़कर गलत ढंगसे भी पेश कर सकें। इन बातोंसे रक्षा तो अवश्य होनी चाहिए, किन्तु वह इस तरह नहीं कि ऐसे लेखोंका छापना कानून द्वारा बन्द कर दिया जाये, या छापेखानेपर ही वार करके उसे बन्द कर दिया जाये। वह तो अखबारोंको स्वतन्त्र रखते हुए सच्चे अपराधीको सजा देकर ही होनी चाहिए। इसी प्रकार सभा-सम्मेलनकी स्वतन्त्रताका सच्चा सम्मान तो उसीको कहा जा सकता है जब लोग आम तौरपर सम्मिलित होकर बड़ी-बड़ी क्रान्तिकारी योजनाओं पर भी विचार कर सकें; और यदि वास्तवमें कोई ऐसी क्रान्ति हो जाये जिसका उद्देश्य जनमतको और जनमतका प्रतिनिधित्व करनेवाली सरकारको भ्रमित करके अव्यवस्था फैलाना हो, तो उस क्रान्तिको कुचलने के लिए सरकार सेनाकी बर्बर शक्तिका प्रयोग न करे बल्कि जनमत और नागरिक पुलिसका ही सहारा ले।

भारत सरकार अब लोकमतको जाग्रत करनेवाले और व्यक्त करनेवाले इन तीन शक्तिशाली और महत्त्वके साधनों को नष्ट करनेका प्रयत्न कर रही है और इस