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देशबन्धुका भाषण

 

जैसा कि आपको निःसन्देह ज्ञात होगा, खिलाफत और कांग्रेसके स्वयंसेवक प्रान्तीय सरकार द्वारा गैरकानूनी संघ घोषित कर दिये गये हैं और हमें उनको दबा देने के आदेश मिल चुके हैं।...
मेरे पास पुलिसके जो सिपाही हैं उनकी संख्या सीमित है । और मैं फौजकी मदद लेना नहीं चाहता। ...
इसलिए मैं जिलेके कुछ बड़े-बड़े रईसों और इज्जतदार लोगों को मददके लिए लिख रहा हूँ। आप कृपया अपने नौकरों-चाकरों, कारिन्दों और पट्टे- दारोंनें से हट्टे-कट्टे और मजबूत ऐसे पचास आदमी छाँटकर तैयार रखें जिन्हें आप मेरा यह सन्देश मिलनेपर कि उनकी स्पेशल पुलिसमें भरतीके लिए जरूरत है, भेज सकें।
फिलहाल सिर्फ इतना ही किया जाये कि आदमी छाँट लिये जायें और उनके नामों व ठिकानोंकी एक सूची तैयार कर ली जाये।

हमें सरकार के चकमे में न आकर, इस जाल में फँसनेवाले रईसोंको जो कुछ भी वे करना चाहें, उन्हें वैसा करने देना चाहिए। हमें सविनय अवज्ञा के सिर्फ ऐसे रूपोंको अपनाना चाहिए जिनसे हमारे अपने लोगों के साथ, चाहे वे सिविल गार्डकी हैसियत से आये हों या अभी जनसाधारणके ही आदमी हों, कोई टक्कर न हो। यह लड़ाई अडिग साहस और अहिंसा के पूर्णतया पालनसे एक महीने के अन्दर-अन्दर जीती जा सकती है। भगवान् भारतको प्रकाश और साहस दे।

मैंने यह आशा की थी कि मौतका सामना करनेकी शपथ अभी दूरकी चीज है। परन्तु ईश्वरकी इच्छा स्पष्ट रूपसे यही है कि हमारी परीक्षा अच्छी तरह और पूरी-पूरी हो। यह लड़ाई ईश्वरके नामपर शुरू की गई थी। वही हमें इसमें पूरा उतरनेकी शक्ति देगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १२-१-१९२२

७३. देशबन्धुका भाषण[१]

देशबन्धु दासके अध्यक्षीय भाषण के प्रकाशनमें देर हो गई, इसके लिए क्षमा चाहता हूँ। मुझे यह भाषण टुकड़ोंमें मिला और उसपर निर्देश था कि मैं उसे सुधार-सँवारकर अच्छे रूपमें छापूँ। पाठकोंको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि इसमें मैंने सिर्फ इतना ही किया है कि एक वाक्य, जो निकाल दिया गया था, फिरसे दे दिया है, एक विचारको पूरा करने के लिए एक वाक्य अपनी ओरसे जोड़ा है और यत्र-तत्र कुछ शाब्दिक परिवर्तन किये हैं, जिनका कोई खास महत्त्व नहीं है; बाकी

  1. गिरफ्तार हो जानेके कारण देशबन्धु चितरंजन दास १९२१ की अहमदाबाद कांग्रेस में अपना अध्यक्षीय भाषण नहीं दे पाये थे। बादमें वह भाषण यंग इंडिया में गांधीजी द्वारा लिखी इस प्रस्तावनाके साथ छपा था।