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वकीलोंकी कठिनाई

सेठ जमनालाल बजाजने[१] नागपुर कांग्रेसके प्रस्तावके[२] अनुसार जो वकील अपनी वकालत स्थगित करें उनकी सहायता के लिए एक लाख रुपयेका दान दिया था। साल-भरके बाद अब यह फण्ड, जैसा कि सोचा भी गया था, प्रायः समाप्त हो चुका है। लेकिन वकील लोग, अगर उन्हें अपनी आबरूका खयाल है, अदालतोंमें वापस नहीं जा सकते। और मुझे विश्वास है कि इनमें से अधिकांश देशके आश्चर्यजनक त्यागको देखते हुए फिरसे वकालत शुरू करनेका विचार तक मनमें नहीं लायेंगे। पर वकीलोंको उनके ही साधनों पर छोड़ देना उचित नहीं होगा। इसलिए प्रान्तीय कमेटियोंको मैं यह सलाह अवश्य दूंगा कि वे इस बोझको अपने ऊपर उठा लें। अलबत्ता, अगर आवश्यक हो तो वे इस काम में केन्द्रीय निधि से भी सहायता ले सकती हैं। यह नई व्यवस्था शीघ्र करनी चाहिए ताकि राष्ट्रीय कार्यकी सुस्थिर गतिमें किसी तरहकी बाधा न आये और वकीलोंके दिलोंमें दुविधा पैदा न होने पाये।

किन्तु इस समय वकीलोंके मार्ग में जो कठिनाइयाँ उपस्थित हैं उनमें यह सबसे छोटी है। राष्ट्रीय जागृतिमें हाथ बँटाने के लिए वे उत्सुक हैं। उनकी आत्मा तो तैयार है, पर उनके मनका दौर्बल्य उन्हें आगे बढ़ने से रोकता है। मैं अब भी यही महसूस करता हूँ कि वकालत करनेवाले वकील नेतृत्वका भार वहन नहीं कर सकते। इस आन्दोलन के लिए पूर्ण, बल्कि उससे भी कुछ ज्यादा, परिणामोंकी ओरसे बिलकुल ही लापरवाह आत्मत्याग तथा बलिदानकी आवश्यकता है। अतः यदि आन्दोलनका नेतृत्व उनके हाथमें आयेगा तो वह कमजोर पड़े बिना नहीं रह सकता। यदि ऊपरके लोग कठोर परीक्षा की घड़ीमें कमजोरी दिखा गये तो पूराका-पूरा उद्देश्य विफल हो जायेगा। इसलिए कांग्रेसने जान-बूझकर ही उनके लिए एक सम्मानपूर्ण मार्ग खोल रखा है। प्रस्तावके मूल पाठमें केवल वही लोग स्वयंसेवक हो सकते थे जो असहयोग कार्यक्रमको पूरी तरहसे निबाहनेकी क्षमता रखते थे। पर अब स्वयंसेवक दलके लिए सहज नियम बना दिये गये हैं। उनमें से अधिकांश तो विश्वासोंसे ही सम्बन्धित हैं। खादीका प्रयोग आरम्भमें कुछ असुविधा उपस्थित कर सकता है, पर यदि प्रतिज्ञा पत्र में जिन आवश्यकताओं का उल्लेख है उनमें उन्हें विश्वास है तो वे उसकी असुविधाकी परवाह नहीं करेंगे। यदि कोई व्यक्ति असहयोगके कारण जेल हो आता है तो उसके बहुत-से अवगुणोंपर पर्दा पड़ जाता है। इसी तरह यदि कोई वकील जेल हो आये तो वह कारावास भोग आनेके फलस्वरूप ही अपने पूर्व गौरवको पुनः प्राप्त कर सकता है। इसके अलावा एक प्रस्ताव इस विषयका भी पास हुआ है जिसके द्वारा सभीको, यहाँ तक कि सरकार के साथ पूर्ण रूपसे सहयोग करनेवाले व्यक्तियोंको भी, ऐसे कामों में भाग लेनेके लिए जिनमें न तो त्याग करना पड़ता है और न मतभेदकी गुंजाइश है, कांग्रेसकी सहायता करनेके लिए आमन्त्रित किया गया है। इसलिए मुझे आशा है कि

  1. १८८९-१९४२; गांधीवादी उद्योगपति, समाज-सेवक और दानी; कई वर्षोंतक भारतीय कांग्रेसके कोषाध्यक्ष रहे; गांधीजीके अनन्य भक्त।
  2. सन् १९२० में नागपुर में अखिल भारतीय कांग्रेसके अधिवेशनमें पारित असहयोग-सम्बन्धी प्रस्ताव।