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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

इसलिए समितिके आदेशसे में आपको सूचित कर रहा हूँ कि हमारी समिति चाबियोंकी अस्थायी रूपसे तथा शर्तोंके साथ की जानेवाली वापसीके सरकारी सुझावको, जिसमें चाबियोंके मामलेमें गिरफ्तार किये गये सभी सिखोंकी बिना शर्त रिहाईकी बात शामिल नहीं की गई है, स्वीकार नहीं कर सकती।

सिख-समाजकी विज्ञप्तिमें निम्नलिखित आवश्यक बातें और जोड़ी गई हैं:

उपर्युक्त पत्र-व्यवहारसे यह स्पष्ट है कि दरबार साहबकी कुंजियाँ शिरो- मणि समितिको वापस करनेमें सरकारको कोई आपत्ति नहीं है। परन्तु यह तभी तर्कके लिए जबतक कि स्वर्ण-मन्दिरके मुकदमेका फैसला नहीं सुना दिया जाता। क्या सरकार शुरूसे यही रवैया अख्तियार नहीं कर सकती थी? कुंजियाँ गुरु- द्वारा समितिके पास रखी रहने देते हुए भी वह मुकदमा चलाती रह सकती थी। कहने की जरूरत नहीं कि जिस तरह समिति इस समय उस मुकदमे में कोई भाग नहीं ले रही है, उसी तरह उस हालत में भी वह उसमें कोई भाग नहीं लेती। जोर-जबरदस्ती करके चाबियाँ ले जाकर और इस जोर-जबरदस्तीके खिलाफ, जिसको व्यर्थता सरकार अब प्रच्छन्न रूपसे स्वयं मान रही है, आवाज उठानेवाले सिखों को गिरफ्तार करके सरकारको इतनी कटुता पैदा करनेकी जरूरत ही क्या थी?

क्षमा-याचना

इलाहाबादसे खबर मिली है कि “क्रिमिनल लॉ एमेन्डमेंट ऐक्ट (फौजदारी कानून संशोधन अधिनियम) के अन्तर्गत गिरफ्तार आठ अभियुक्तोंको छोड़ दिया गया क्योंकि उन्होंने माफी माँग ली और गैर-कानूनी सभाओं, तथा मूर्खतापूर्ण एवं अशोभनीय आन्दोलनोंमें भाग लेनेपर अफसोस जाहिर किया है।” चूँकि मथुरामें कुछ ही महीनों पहले जो-कुछ हुआ था उसे मैं भूला नहीं हूँ इसलिए मुझे इस खबरपर विश्वास नहीं होता। मथुरामें कुछ नामधारी असहयोगी सत्याग्रही गिरफ्तार किये गये थे और फिर उनसे माफी मँगवाई गई थी। बादमें अधिकारियोंकी तरफसे यह दावा किया गया कि असहयोगियोंने माफी माँगी है। मैं इस समाचारको सत्य तो नहीं मानता लेकिन मैं यह जरूर चाहता हूँ कि कार्यकर्त्ता इससे फायदा उठायें। अगर उन बहुतसे नौजवानोंमें से जो कि रोजाना गिरफ्तार किये जा रहे हैं कुछ लोग कमजोर पड़ जाते हैं और पीछे कदम हटाते हैं, खासतौरसे उस हालतमें जब कि लोगोंके साथ भले ही कुछ समय के लिए ही, ऐसा बरताव किया जाता है जैसा कि महादेव देसाईके साथ किया गया है,[१] तो हमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए। हम लोगोंको थोड़े-से ही आदमियोंके गिरफ्तार होनेपर सन्तोष मानना चाहिए, बजाय इसके कि हममें कुछ लोग दिलके कमजोर हों और किसी खास मौकेपर आवेशमें आकर गिरफ्तार तो हो जायें पर बादमें घुटने टेक दें।

  1. देखिए “टिप्पणियाँ”, ५-१-१९२२ का उप-शीर्षक “जेल जीवनकी झांकी”।