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टिप्पणियाँ

रवैया अपनाया है। उन्हें कलकत्ता जेलमें साथियोंसे जा मिलनेका मौका मिला और वे इस मौकेको चूकनेवाले नहीं थे। ‘सर्वेन्ट’ ने अपनी स्थापनाके दो सालमें ही बहुत बड़ी मुश्किलों के बावजूद अच्छी-खासी कीत्ति अर्जित कर ली है। उसकी इस प्रगति में श्यामबाबूके योग्य निर्देशनका बहुत बड़ा हाथ था। पत्रके पाठकोंको अब इस लाभ से वंचित होना पड़ेगा। लेकिन मुझे सन्देह नहीं कि श्यामबाबू जेलमें रहकर देशकी उससे भी अच्छी सेवा कर रहे हैं। कष्ट सहनेका जो उदाहरण उन्होंने पेश किया है वह किसी भी उस सम्पादकीयसे ज्यादा प्रभावशाली है जो कि वे अपनी सशक्त लेखनीसे लिखते।

बेलगाँव में श्री देशपाण्डेका स्थान श्री माजलीने लिया था। अब श्री माजली गिरफ्तार कर लिये गये हैं। उनकी गिरफ्तारीने कर्नाटकको प्रतिष्ठा प्रदान की है। विदाईके सन्देशमें उन्होंने स्वर्गीय श्री ह्यूमके शब्दोंको दोहराया है: “आपकी सम्पदा, पांडित्य, कोरी उपाधियों और निकृष्ट व्यापारका क्या मूल्य है ? वास्तविक स्वायत्त शासन इन सबके समन्वित मूल्यके बराबर है। राष्ट्र अपने प्रयत्नसे ही बनते हैं।” श्री माजलीसे कहा गया था कि वे 'अच्छे चाल-चलनके' लिए मुचलका दें। चूंकि उन्हें इसका पता ही नहीं था कि उन्होंने बुरे चाल-चलनके अभियोगके लायक कोई काम किया है, इसलिए उन्होंने जमानत देनेसे इनकार कर दिया और वहाँ जाना बेहतर समझा जहाँ कि अच्छे चाल-चलनवाले आदमी आजकल जानेमें सुखका अनुभव करते हैं। श्री माजली चाहते हैं कि केवल स्वतन्त्र भारतकी सरकार ही उन्हें जेलसे छोड़े और वे सबसे शुद्ध खादी पहनने की प्रार्थना करते हैं जो कि पवित्र और स्वतन्त्र भारतका प्रतीक है और विदेशी कपड़ोंका बहिष्कार करने के लिए कहते हैं, क्योंकि ये कपड़े विदेशी जुएके प्रतीक हैं।

श्री माजली की ही तरहका कसूर आन्ध्र प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीके मन्त्री डा० बी० सुब्रह्मण्यमका था। उन्हें कोकोनाडामें एक सालकी कड़ी सजा दी गई है।

गुरुद्वारा आन्दोलन

सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक समितिसे जो ताजे समाचार मिले हैं उनसे प्रकट होता है कि कमिश्नरने अमृतसर के स्वर्ण मन्दिरकी चाबियाँ लौटा देनेकी बात कुछ शर्तोंके साथ सामने रखी है। सरदार भगत जसवन्तसिंहने देरीसे प्राप्त होनेवाले इस प्रस्तावका जोरदार जवाब भेजा है। सरकारी विज्ञप्तिकी पहुँच स्वीकार करते हुए सरदारजीने ये पंक्तियाँ लिख भेजी हैं:

६ दिसम्बर, १९२१को शि० गु० प्र० समितिने जो प्रस्ताव पास किया है मैं उसकी ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ:
निश्चय किया जाता है कि जबतक स्वर्ण-मन्दिरकी चाबियोंके सिलसिलेमें गिरफ्तार किये गये सब सिखोंको बिना किसी शर्तके रिहा नहीं कर दिया जाता तबतक कोई भी सिख चाबियोंको वापस लेनेके सम्बन्धमें की गई किसी भी व्यवस्था में अपनी रजामन्दी जाहिर न करेगा।