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टिप्पणियाँ

कुछ ही सिख भाई कांग्रेस के अधिवेशन में आते थे। परन्तु अब सिख जाति राष्ट्रीय आन्दोलनमें चारों ओर हाथ मार रही है। ४६९ मुसलमानोंकी संख्या भी अच्छी-खासी है; परन्तु जबतक पूरी तादादमें जो १२०० से भी अधिक होगी, वे लोग न आयें तबतक हमें सन्तोष नहीं हो सकता। मुझे यकीन है कि 'अन्त्यज' प्रतिनिधि २ से अधिक आये होंगे। पंजाब और आन्ध्र प्रान्तोंसे ऐसे प्रतिनिधि न आयें, ऐसा मैं खयाल नहीं कर सकता। पारसियों के प्रतिनिधियोंकी निश्चित संख्या उनकी संख्याके हिसाबसे २ है, अतएव ५ प्रतिनिधियोंका उपस्थित होना उनकी संख्यासे बहुत अधिक है। जैसा कि मैंने कई बार कहा है कि पारसी भाई अपनी संख्या के लिहाजसे क्या त्याग, क्या उपस्थिति, क्या योग्यता और क्या उदारता, सभीमें बहुत ऊँचा स्थान रखते हैं। मुझे मालूम हुआ है कि कमसे कम २ ईसाई प्रतिनिधि भी आये हुए थे। और यदि श्रीयुत स्टोक्स और श्रीयुत जॉर्ज जोजफ आज जेलके बाहर होते तो वे अवश्य मौजूद होते। परन्तु यह हिन्दुओं और मुसलमानोंका काम है कि वे ईसाई जातिके हृदयमें इस आन्दोलनके प्रति अधिक प्रेम पैदा करनेकी दिलोजानसे कोशिश करें।

प्रेक्षकगण

प्रतिनिधियोंकी उपस्थिति तो बहुत सन्तोषजनक थी ही; परन्तु प्रेक्षकोंकी संख्या भी उससे कम नहीं थी। देशकी स्थिति विक्षुब्ध होने के कारण बड़े-बड़े धनाढ्य व्यक्ति तो अधिवेशनसे दूर ही रहे, इसलिए पाँच हजार रुपयेवाला एक भी टिकट न बिक सका। तो भी एक-एक हजार रुपयेवाले २१ टिकट बिके, २० आदमियोंने पाँच-पाँच सौके खरीदे, १६२ ने सौ-सौके, ८१ ने पचास-पचासके और १,६८६ ने पच्चीस-पच्चीसके टिकट खरीदे। इस तरह कुल ९३,४००) रुपया आया। स्वागत समितिकी ओरसे निश्चितसे अधिक रकम आई—जो कि ७८,६२५) रुपये थी। तीन-तीन रुपयेके ११,२६१ सीजन टिकट बिके। इन टिकटोंके आधारपर कांग्रेसकी बैठकोंको छोड़कर सब जगह जाया जा सकता था। ६४,४६९ टिकट चार-चार आनेवाले बिके। जैसा कि मैं पहले बता चुका हूँ, भीड़के कारण सीजन तथा प्रवेश टिकट बेचना बन्द कर देना पड़ा था। विभिन्न फीसोंके रूपमें स्वागत-समितिको २,४९,५२७ रुपये प्राप्त हुए।

अखिल भारतीय ईसाई सम्मेलन

श्री मुखर्जीकी अध्यक्षतामें होनेवाले इस सम्मेलनको हम इसलिए महत्त्वपूर्ण कह सकते हैं कि उसने देश के राजनीतिक जीवनमें काफी दिलचस्पी दिखाई है। अध्यक्ष महोदय से लेकर साधारण प्रतिनिधितक सभी इस बातका आग्रह प्रदर्शित कर रहे थे कि वर्तमान राष्ट्रीय जागृतिमें भारतीय ईसाइयोंको अवश्य भाग लेना चाहिए। प्रोफेसर एस॰ सी॰ मुखर्जीका कथन है कि

हमें अपनी वाणी और अपने कार्यों द्वारा यह प्रमाणित करके दिखा देना चाहिए कि ईसाई धर्मने हमें अभारतीय और अराष्ट्रीय नहीं बना डाला है। हमारे मजहबी खयालातमें फर्क भले ही हो, लेकिन हम एक जमातके रूपमें