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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

अभियोगोंको निर्मूल साबित करने का भी मौका नहीं दिया जाता, ऐसा साम्राज्य खत्म होनेके ही काबिल है। स्मरण रहे कि श्री मणिलाल डाक्टर कई सालसे बैरिस्टरी करते आ रहे हैं। आम आदमीको यह सोचनेकी आदत पड़ गई है कि वकील लोग कमसे कम अपनेको सताये जानेसे बचा सकते हैं। खैर, जहाँ-जहाँ श्री मणिलालने अपना धन्धा जमानेकी कोशिश की, वहाँके किसी भी वकीलने अपने ही व्यवसायवाले को बचानेका प्रयत्न तक नहीं किया। वास्तवमें न्यूजीलैंडकी लॉ सोसाइटी और अदालतने ही श्री मणिलालको वकालत के पेशेसे अलग रखनेका षड्यन्त्र रचा है।

मालवीय परिवार

इस निराले असहयोग संग्रामकी एक अत्यन्त निराली बात यह है कि इसके कारण कितने ही परिवारोंमें मतभेद उत्पन्न हो गया है। और उनमें भी मालवीय परिवारमें जो मतभेद उत्पन्न हुआ है वह तो विशेष रूपसे उल्लेखनीय है। मेरी राय में तो यह घटना भारतवासियों के लिए सहिष्णुता और सविनय अवज्ञाका अच्छा-खासा पाठ प्रस्तुत करती है। श्री मालवीयजीकी सहिष्णुता तो अनुपम है ही। मुझे यह मालूम है कि वे जेल जाने के खिलाफ हैं। मैं यह भी जानता हूँ कि यदि वे उसके कायल होते तो वे ऐसे आदमी नहीं हैं जो उससे बचनेकी कोशिश करते। और जब उनका सन्ताप हद दर्जे तक पहुँच जायेगा और जब मेरी ही तरह उनका भी विश्वास ब्रिटिश न्यायपर से पूरी तरह उठ जायेगा तब यदि वे जेल जानेके लिए सबसे आगे बढ़ जायें तो मुझे जरा भी आश्चर्य न होगा। परन्तु यद्यपि वे आज स्वयं सविनय कानून-भंगके खिलाफ हैं तथापि उन्होंने कभी उन लोगों तकके किये गये निश्चयोंमें हस्तक्षेप नहीं किया जो उनके निकट सम्बन्धी हैं और जिनपर अपने प्रेम अथवा बुजुर्ग होने के नाते उनकी निर्विवाद सत्ता है। बल्कि इसके विपरीत उन्होंने अपने पुत्रोंको अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार बरतनेकी पूरी आजादी दे दी है। गोविन्दकी सविनय अवज्ञाका उदाहरण मेरी दृष्टिमें सँजोकर रखने लायक है। पण्डितजीने अपने मृदुल और सौजन्यपूर्ण ढंगसे उस वीर नवयुवकको इस मार्ग से दूर रखने का भरसक प्रयत्न किया। गोविन्दने भी अन्ततक अपने पूज्य पिताकी इच्छा के अनुसार चलने का भरसक प्रयत्न किया। उसने ईश्वरसे प्रार्थनाकी कि मुझे मार्ग दिखा। वह परस्पर विपरीत कर्त्तव्यको सामने देखकर गहरे असमंजसमें पड़ गया। गोविन्दपर नेहरुओंकी गिरफ्तारीका बड़ा असर हुआ, और उसने अपने विशाल हृदय पिताका आशीष प्राप्त करके संघर्ष में कूद पड़ने का निश्चय कर लिया। जेलोंको भी गोविन्दसे बढ़कर उल्लासपूर्ण हृदयवाला युवक शायद ही मिला होगा। यह साहसके साथ कहा जा सकता है कि सविनय अवज्ञा करके गोविन्दने अपने देश और पूज्य पिताके प्रति अपनी कर्त्तव्यपरायणता प्रमाणित की है। बालकों द्वारा कर्त्तव्य भावसे सविनय अवज्ञा करने के मामलेमें गोविन्दका यह कार्य हमारे जमाने के सामने एक नमूना पेश करता है। मुझे विश्वास है कि इसके कारण पिता और पुत्रके बीच कोई दरार पैदा नहीं हुई है। शायद मालवीयजीको आज गोविन्दपर पहलेकी अपेक्षा अधिक गर्व होगा। ऐसे ही सत्य-युक्त कार्य इस युद्धके धार्मिक स्वरूपको प्रमाणित करते हैं। गोविन्दने अदालतमें जो