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टिप्पणियाँ
रुईके व्यापारके सम्बन्धमें अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि कलकत्ताके व्यापारियोंने विदेशी कपड़ा न खरीदनेका आपसमें जो निश्चय किया था वह खत्म हो रहा है। यह बात जोरोंसे सुननेमें आ रही है कि बहिष्कार फरवरीतक और बादमें भी चलता रहेगा लेकिन वह अवधि जिसके बारेमें वस्तुतः निश्चय किया गया था, सालके खत्म होते-होते खत्म हो जायेगी और उस समयके बाद विदेशी कपड़ों की खरीद पर प्रतिबन्ध बने रहने की सम्भावना नहीं है । …कुछ भी हो, जहाँतक मालूम हो पाया है कलकत्ताके व्यापारियोंके सामने इस बहिष्कारको दुबारा चालू करनेकी कोई बात पेश नहीं है। गांधी-आन्दोलनकी इस विशेष प्रवृत्तिके रास्ते से हट जानेके बाद यह बात करीब-करीब निश्चित-सी मालूम होती है कि भारतके साथ व्यापारमें पुरानी स्थिति पुनः आ जायेगी। …अगर भारत थोड़ा-बहुत माल भी मँगानेके लिए आगे बढ़े तो दूसरी मण्डियोंमें हमारा माल बिकेगा, ऐसी सम्भावना है।

काश! इस लेखकने जिस सम्भावनाका उल्लेख किया है उसके क्रियान्वित होने की आशा होती। स्वदेशी कोई अस्थायी योजना नहीं है। वह स्वराज्यकी संगिनी है। हाथकी कती और बुनी हुई खादी ही पहनी जानी चाहिए और सो भी निष्ठाके साथ। विदेशी कपड़ेका बहिष्कार कोई दण्ड नहीं है; बल्कि यह पवित्रीकरण और स्थायी राहत पहुँचानेका साधन है। स्वराज्यके साथ इसकी अदला-बदली नहीं की जा सकती। या यों कहें कि स्वराज्य खादीपर अवलम्बित है। स्वदेशीके फलस्वरूप इंग्लैंडपर दबाव तो पड़ ही रहा है। लेकिन अगर इंग्लैंड खादी आन्दोलनकी सर्वथा अवहेलना कर दे, तो भी उसके लिए आन्दोलन चलता ही रहेगा। जहाँतक लंकाशायरका अपने कपड़े के लिए भारतीय मंडियोंपर आश्रित रहनेका सवाल है, उसे अपना बाजार अन्यत्र खोजना पड़ेगा। बड़ेसे बड़ा लोभ भी भारतको निठल्ला बैठे रहने और लंकाशायर या किसी दूसरेकी खातिर पराश्रयी बने रहने के लिए प्रेरित नहीं कर सकता। अगर सब कुछ ठीक रहता है और अगर भारत और इंग्लैंडको दोस्त और स्वेच्छा से साझीदार बने रहना है, जैसी कि मैं आशा करता हूँ और चाहता हूँ, तो ऐसी बहुत-सी अन्य चीजें हैं जो इंग्लैंड भारतको बेच सकता है और भारत भी उन चीजों को लेकर फायदा उठा सकता है। कपड़ा तो भारत किसीसे भी नहीं लेगा, चाहे वह दोस्त हो या दुश्मन। जो भारत इंग्लैंड और दूसरे शोषकोंकी एड़ियोंके नीचे दबा कराह रहा है उसकी अपेक्षा पुनरुत्थित, समृद्धिशाली और स्वतन्त्र भारत इंग्लैंड तथा संसारके मालकी खपतके लिए ज्यादा अच्छी मंडी बनेगा।

भगवान‍्के हाथोंमें

हालाँकि बड़ो दादाके[१] पत्र और इंग्लैंडके एक ईसाई धर्म प्रचारकके पत्र में व्यक्तिगत बातें हैं फिर भी वे इतनी महत्त्वपूर्ण हैं कि मैं उन्हें जनता के सामने रखने का

  1. द्विजेन्द्रनाथ ठाकुर, रवीन्द्रनाथ ठाकुरके सबसे बड़े भाई। जिन्हें लोग बड़ो दादा कहा करते थे।