पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/१९४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

है। यद्यपि उसके तरीकोंमें सुधार किये जा रहे हैं। लेकिन अगर चरखा अपना पुराना स्थान ग्रहण कर ले तो यह अविलम्ब [कपड़े की] अखरनेवाली कमीको पूरी करेगा, साथ ही बढ़ते हुए परिवारोंके लिए भी साधन जुटायेगा। यह अतिवृष्टि आदिका भी डटकर मुकाबला कर सकता है और कई खतरोंसे बीमेकी तरह हमारी रक्षा करता है। इससे देशको औद्योगिक प्रयत्नके लिए प्रेरणा मिलती है। चरखा सफलता प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय पैमानेपर किये जानेवाले सहयोगको सर्वथा अनिवार्य बना देता है। खादीका आन्दोलन गाँव के जीवनमें क्रान्ति ला रहा है और लाखों लोगोंके दिलों में आशाका संचार कर रहा है। इसमें कोई अचरज नहीं, जैसा कि कलकत्ता के अखबारोंसे पता चलता है, कि शायद डा॰ राय[१] चरखा आन्दोलनको बढ़ावा देनेके लिए अपने गाँव काटपाड़ा गये हैं और वहाँ उन्होंने हर व्यक्तिसे अपने अवकाशके समयमें चरखा कानेके लिए कहा है, क्योंकि उनके मतानुसार चरखा राष्ट्रकी मुक्तिका साधन सिद्ध होगा। उन्होंने बड़े जोरदार शब्दोंमें कहा कि अगर गाँव के लोग छः महीने के अन्दर-अन्दर खुदके कते और बुने कपड़ेसे अपनी जरूरतें पूरी कर लें तो उनकी [स्वराज्यकी] हार्दिक इच्छा पूरी हो जायेगी।

कांग्रेसियो सावधान!

जबतक मैं खादी आन्दोलनके प्रचारमें लगा हुआ हूँ मैं कांग्रेस कमेटियों और खिलाफत समितियोंको चेतावनी देना चाहता हूँ कि स्वदेशीके सम्बन्धमें जो प्रयत्न किया जा रहा है वे उसमें ढिलाई न आने दें। सविनय अवज्ञापर अपनी शक्ति केन्द्रित करनेका अर्थ है स्वदेशीके लिए दूना उत्साह। स्वदेशीके बिना सविनय अवज्ञा एक ऐसा मरण है जिसमें से पुनर्जीवनकी आशा नहीं की जा सकती या यों कहें कि यह किसी ऐसे बंजर खेतको जोतना है जिसमें नई फसल बोनेकी गुंजाइश ही नहीं है। सविनय अवज्ञाका अभिप्राय यह भी होना चाहिए कि खादी आन्दोलनको अधिक प्रोत्साहन मिले। सभी स्त्रियों, पुरुषों और बच्चोंको, जो जेलमें नहीं हैं, चाहिए कि वे अपनी फाजिल शक्ति, हर उपलब्ध क्षण सूत कातने में लगायें और खादी तैयार करें और दूसरोंमें भी इसका प्रचार करें। स्वदेशीके बारेमें मेरी अब भी यह प्रबल धारणा है कि पूर्ण स्वदेशी स्वयंमेव हमें स्वराज्यकी ओर ले जायेगी। राष्ट्र के लिए स्वराज्य ऐसा ही है जैसा कि किसी व्यक्ति के लिए शारीरिक स्वच्छता।

'टाइम्स'का साक्ष्य

'टाइम्स' में व्यापारपर टिप्पणियां लिखनेवाले व्यक्तिने १० दिसम्बरके व्यापार परिशिष्टमें रुईके व्यापारमें आई हुई मन्दीके बारेमें लिखा है :[२]

रुईके व्यापारमें जो मन्दी आई है वह बदस्तूर जारी है।…लंकाशायरके धीरज, साहस और विश्वासकी कठिन परीक्षा हो रही है।
  1. डा॰ प्रफुल्लचन्द्र राय।
  2. यहाँ केवल कुछ अंश दिये जा रहे हैं।