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टिप्पणियाँ
जेल में हैं, सम्मेलनको बातचीत उठाना बिलकुल गलत है। केवल सन्धिके लिए समय निश्चित किया जाना चाहिए और कुछ नहीं।
मोपला लोग अब तीसरे दर्जे के डिब्बों में ले जाये जा रहे हैं। उनके डिब्बोंकी खिड़कियों में सिर्फ सींखचे लगे होते हैं। अब हम देखते हैं कि सिपाही उन्हें पानी देते हैं और किसी-किसी स्टेशनपर तो सिपाही पानीके लिए दौड़-भाग भी करते हैं। सत्तर आदमियोंका बलि चढ़ना बेकार नहीं गया। अब हजारों मोपलाओं के साथ आदमियों जैसा बरताव किया जाता है।

मैं कैदियोंसे प्राप्त होनेवाले पत्र यहाँ देता रहा हूँ क्योंकि हमारा संघर्ष कितना जोरदार है और लोगोंका संकल्प कितना दृढ़ है, उसे साबित करनेवाली इनसे बढ़कर और कोई चीज नहीं है। पाठक यह देखेंगे कि प्रस्तावोंके सम्बन्धमें दिये गये राजगोपालाचारीके विचार प्रायः पूर्वानुमानित हैं। उनकी इस सलाहके पक्षमें कि मुख्य प्रस्तावमें समझौतेका कोई जिक्र न हो बहुत-कुछ कहा जा सकता है। यद्यपि हम कमजोर थे और शायद अब भी हैं तथापि जरूरत इस बातकी है कि हम अपना ध्यान कष्ट सहनके मार्ग से न हटायें। फिर भी मैं अनुभव करता हूँ कि जिस तरीकेसे प्रस्तावका उल्लेख किया गया है वह अपरिहार्य था। हमें अपनी कमजोरी जाननी और स्वीकार करनी चाहिए और हमें मजबूत बननेकी आशा रखकर काम भी करना चाहिए। मुझे आश्चर्य नहीं होगा अगर संघर्षकी समाप्तिपर पहुँचने तक हमें बहुत-से समझौते और सन्धियाँ करनी पड़ें और बहुत-सी असफलताएँ मिलें। सच्चा सैनिक वह है जो जीवन और परिस्थितियोंको एक दार्शनिक ढंगसे देखता है। वह परिणाम के प्रति तटस्थ भाव रखता है। उसका कर्त्तव्य तो पूरी शक्तिसे काम करते रहना है; उसके लेखे विश्राम और कष्ट एक जैसे ही होते हैं। वह विश्राम इसलिए करता है कि जरूरत पड़ने पर और भी अधिक कष्ट झेल सके। हमें बिना उत्तेजित हुए सहिष्णुता बढ़ानी चाहिए। चूंकि अपनी इच्छासे कष्ट सहना एक नया अनुभव है, इसलिए लोग समझते हैं कि यदि क्षणिक आवेश दब जाये तो शायद हम नये दमनके विरुद्ध खड़े होने की इच्छा ही न करें, लेकिन स्वराज्य-प्राप्ति के लिए सबसे आवश्यक शर्त यह है कि हम कष्ट सहने के लिए हमेशा तैयार रहें। क्या इंग्लैंड अपनेको आक्रमणके भयसे मुक्त रखने के लिए अपने शस्त्रागारमें स्थायी रूपसे शस्त्रास्त्र नहीं रखता? इसमें सन्देह नहीं कि यह पागलपन है, आत्मघातक है और इसका अर्थ ईश्वरकी सत्ता और उसके न्यायमें अविश्वास करना भी है। लेकिन जबतक इंग्लैंड यह आवश्यक समझता है कि वह दूसरे देशोंपर अपना व्यापार लादे, उनको लूट-खसोटे तबतक वह अन्यथा कर ही नहीं सकता। वह चाहता है कि दुनियाके राष्ट्र उससे डरें और इसके लिए उसे बड़ी भारी कीमत चुकानी पड़ती है। लेकिन मेरी समझ में भारत तो यह चाहता है कि सब राष्ट्र उससे प्यार करें; इसीलिए भारतको चाहिए कि वह आजादी के लिए हमेशा कष्ट उठानेको तैयार रहे। हम अपनी इच्छा के विरुद्ध इतने लम्बे समय से कष्ट उठाते आये हैं कि अब हमारे लिए यह सोचना तक कठिन है कि हम बिना कष्ट उठाये भी रह सकते हैं। आइए, अब हम कष्ट सहनेकी अनिच्छाको