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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय


सकते। अहिंसा आधारपर तो हम केवल असहयोग अथवा सविनय अवज्ञा आन्दोलन ही चला सकते हैं, समानान्तर सरकार और सुनिश्चित संस्थाओंको एक बहुत ही संकुचित सीमासे आगे चलाना सम्भव नहीं है। संसारकी वर्तमान परिस्थिति में अहिंसाके तरीकेसे केवल एक नकारात्मक और विनाशात्मक रवैया अख्तियार किया जा सकता है और इसके बाद नई सरकारके साथ इस तरीकेको चलाया जा सकता है लेकिन वैसी समकालीन समानान्तर सरकार नहीं चलाई जा सकती जैसी कि आयरलैंडवासियों द्वारा चलाई गई मानी जाती है। अगर मैं अपने विचार स्पष्ट रूपसे जाहिर नहीं कर पाया हूँ तो भी चिन्ताकी बात नहीं है। मैं इस विषयपर थोड़ा-सा इसलिए कह गया कि कहीं कोई सदस्य इस विषयका प्रस्ताव रखने पर जोर न दे बैठे।
मुझे नहीं मालूम कि अब हम कब या किन परिस्थितियों में मिलेंगे। लेकिन में अनुभव करता हूँ कि ज्यों-ज्यों जेल जानेका समय नजदीक आ रहा है में अपने जीवनका उद्देश्य अनुभव करने लगा हूँ।

२० तारीखको निम्नलिखित पंक्तियाँ लिखी गई थीं :

मैं दिन-प्रतिदिन अधिकाधिक यह अनुभव कर रहा हूँ कि हमपर सुलह और बातचीतका दौर समयसे बहुत पहले लादा जा रहा है। यदि आप कोई ऐसा तरीका निकाल पाते कि इस बातचीतको अपने संघर्षमें कुछ और सफलताएँ पानतक स्थगित किया जा सकता तो बड़ा अच्छा होता। सरकार तो तत्काल बातचीत करना पसन्द करेगी क्योंकि निश्चित ही इस समय हमारी शर्तें एक महीने बाद रखी जानेवाली शर्तोंकी अपेक्षा हलकी होंगी। हमारे नरमदलीय मित्र बातचीतके लिए बेहद उत्सुक हो रहे हैं। वे देख रहे हैं कि हम भयग्रस्त नहीं हैं और अवश्य जीतेंगे; इसलिए वे लोग अपनी असाध्य दुर्बलताओंके कारण संघर्षको तीव्र रूप धारण करनेसे पहले ही समाप्त देखना चाहते हैं। आपसमें बहुत स्पर्धा होनेके कारण वे अधकचरे विचार ही उगल देते हैं। सरकार चतुर है। उसने अपनी गलती समझ ली है और यह भी अनुभव कर लिया है कि हम लोग जोर-जुल्मके आगे झुकनेवाले व्यक्ति नहीं हैं। इसलिए वे लोग चुपचाप पीछे हट रहे हैं। मद्रास सरकारने निश्चित रूपसे यह घोषणा कर दी है कि वे संगठनों को गैर-कानूनी घोषित नहीं करेंगे और यही काम बिहार और उड़ीसाकी सरकारोंने भी किया है।
सरकार अब समझ रही है कि नरमदलीय लोगोंने उसका साथ छोड़ दिया है। लेकिन हमें अपने पक्षको थोड़ा और मजबूत कर लेनेतक रुके रहना चाहिए। युवराजको वापस चले जाने दीजिए और उसके बाद फरवरीमें हम समझौतेके बारेमें सोचें। तबतक हमें यह भी मालूम हो जायेगा कि गुजरातने क्या कुछ कर दिखाया है। इस अवसरपर जब कि नेहरूजी, दास और लालाजी